गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

रात के गहरे सन्नाटे से निकल कर.

रात के गहरे सन्नाटे से
निकल कर...
वो एक रोज़ आई थी
मुझसे मिलने को...

जहा का डर था उसके दिल में
की कही कोई उसे देख ना ले साथ मेरे
वो दबे पाँव मिलने उस रोज़ आई थी मुझको

थी खामोसी उस रात कुछ ऐसी
की बिन कहे उसके..
मैंने पढ़ ली थी आँखे उसकी..
जो वो ना कह पाई थी मुझको

मेरा प्यार, और उसकी चाहत
यूँ तो थी एक सी ...
मगर वो कहा समझ पाई थी मुझको ..

मैंने किया था वादा उससे..
ता-उम्र उसके साथ जीने और मरने का
और उस रात उसकी मोजुदगी..
ने यूँ ऐसा असर किया मुझ पर
फिर कहा उस रात के बाद..
मैं कभी फिर से से मिल पाया था उसको

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