रविवार, 29 जनवरी 2012

मेरे घर के करीब .

मेरे घर के करीब
उस दिल रुबा का घर है
देखकर जिसको धडकता है ये दिल
और खुशी मिलती है मुझको
बस मेरी नजरो के सामने ही मेरा रब है

मगर प्यार करना और किसी को चाहना
दो अलग-अलग बात है
मेरे सामने है समंदर
फिर भी प्यासे ये मेरे लब है
मेरे घर के करीब
उस दिल रुबा का घर है

वो देखकर मुझको कभी घबरा
तो कभी मुस्कुरा देती है
और उसके सामने
मेरी हालत भी कहा अच्छी रहती है
यूँ तो अकेले में अक्सर सोचता हूँ
की जब वो मिलेगी तो हाले-ऐ- दिल
उसको सुनाऊंगा अपना
मगर वो जब भी मिली
ये जुबा......
खामोस ही रहती है
मेरे घर के गरीब
उस दिल रुबा का घर है

आज हो गए है बरसो
हम दोनों को इस तरह से
ना वो ही कुछ कहती है
और ना मैं ही कुछ बोल पता हूँ
अगर ये सच है की प्यार की कोई जुबा नहीं होती
वो बिन कहे समझ लेता है
सबकुछ तो फिर ....
हम दोनों के बीच ये दुरिया कैसी है
मेरे घर के करीब
उस दिल रुबा का घर है

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