शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

याद तुम आ गई.

हुई जो रात तो मुझको याद
तुम आ गई
छिड़ी जो कोई बात तो मुझको
याद तुम आ गई
बात बे बात, जाने क्या बात
आज फिर से याद मुझको
तुम आ गई..

यूँ तो मैंने वादा किया था तुझसे
और तुने मुझसे ..
फिर कभी ना याद
एक-दुसरे को करने का
पर आज तोडके हर वादा अपना
और भुला के हर बात
मुझको याद तुम आ गई

हुई जो रात तो मुझको याद
तुम आ गई

ये माना की आज हम-तुम साथ नहीं है
मगर हम जेहन में तो है एक-दुसरे के
जो अगर झूठा हूँ मैं और ये भ्रम है मेरा
फिर क्यूँ आज सालो के बाद
फिर से मुझको याद तुम आ गई

हुई जो रात तो मुझको याद
तुम आ गई ..

बुधवार, 28 दिसंबर 2011

आती है उसकी याद ...

आती है उसकी याद जब भी लेता हूँ, साँस
खोलता हूँ किताब आती है, उसकी याद
जब कभी रहूँ दोस्तों में, मैं फिर भी लगे अकेलापन
आती है उसकी याद, जब भी लेता हूँ साँस

भीड़ में रहकर भी न जाने क्यूँ तन्हा सा लगे
अपनों में होकर भी मुझको बेगाना सा लगे
है अजीब सी कशमश इस जिन्दगी और मेरे बीच में
जो करू खुद से बात तो आती है उसकी याद
जब भी लेता हूँ सांस..

वो समंदर है गहरा
और मैं हूँ उस समंदर का किनारा
वो जब भी मिले मुझसे
तो मैं छू लू ये जहा सारा
जो गर हम हो जुदा मिलकर फिर से
तो ये रोता है किनारा
आती है उसकी याद जब भी महसूस करता हूँ
उसका एहसास .....

आती है उसकी याद जब भी लेता हूँ, साँस ...

बुधवार, 21 दिसंबर 2011

अजीब सी हलचल दिल में है आजकल

अजीब सी हलचल दिल में है आजकल
ऐसा लगता है की जैसे कुछ चल रहा है अन्दर
आजकल बिना किसी बात के..
कभी मैं बहुत खुश तो कभी उदास हो जाता हूँ
पता नहीं है क्यूँ मेरे साथ..
ऐसा हो रहा है आजकल
अजीब सी हलचल दिल में है आजकल

कुछ लोग कहते है की ये प्यार है
कुछ कहे ये दीवानगी है मेरी
मैं पागल हो गया हूँ.
अगर ये सच है.......
तो क्यूँ मैं जिन्दा हूँ आजतक
अजीब सी हलचल है दिल में आजकल

कहने को तो ये सारी दुनिया है "जय" अपनी
और तू हिस्सा है इसका
मगर फिर भी क्यूँ तू...
जुदा है सा है , इनसे आजतक
अजीब सी हलचल दिल में है आजकल

यूँ तो सब है मेरे
और मैं हूँ सबका
मगर फिर क्यूँ तू उस एक शख्स पर
ही ठहरा हुआ है आजतक
अजीब सी हलचल दिल में है आजकल

ये माना की आज जिन्दगी
कल जैसी ना रही .
मगर जो कुछ भी बदला ..
उसे क्यूँ तू "जय " एतमाद ना कर पाया आजतक
अजीब सी हलचल दिल में है आजकल

मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

रात कुछ अजीब थी ..

रात कुछ अजीब थी
वो कुछ करीब थी
थी कुछ अजीब सी सरगोशी हवाओ में
मेरे रूबरू था सारा जहा ..
जो वो इस कदर मुझको जेह-नसीब थी

था कहा फिर डर मुझे इस ज़माने का
जो साथ थी वो मेरे ..
वो जो मुझ में शरीक थी ..

मगर जब नींद खुली
तो फुटा ये मुकद्दर मेरा
वो महबूबा नहीं ....
मेरे महबूब की फटी तस्वीर थी

रात कुछ अजीब थी ...

सोमवार, 19 दिसंबर 2011

रात के अँधेरे से हमें डर लगता है.

रात के अँधेरे से हमें डर लगता है
सुबह की रौशनी से हमें डर लगता है..
ये दुनिया कुछ भी तो नहीं है..
मेरे लिए......................
मगर मुझे तेरी बदनामी से
डर लगता है .............

तुझको चाहू तो खता क्या है......

तुझको चाहू तो खता क्या है.
है तू मोहब्बत मेरी तो बुरा क्या है.
लोग अक्सर बदल जाते है
एक वक़्त के बाद..
जो अगर मैं ना बदलू कभी तेरे लिए
इस दिल से .....
तो मेरी सजा क्या है?....

गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

रात के गहरे सन्नाटे से निकल कर.

रात के गहरे सन्नाटे से
निकल कर...
वो एक रोज़ आई थी
मुझसे मिलने को...

जहा का डर था उसके दिल में
की कही कोई उसे देख ना ले साथ मेरे
वो दबे पाँव मिलने उस रोज़ आई थी मुझको

थी खामोसी उस रात कुछ ऐसी
की बिन कहे उसके..
मैंने पढ़ ली थी आँखे उसकी..
जो वो ना कह पाई थी मुझको

मेरा प्यार, और उसकी चाहत
यूँ तो थी एक सी ...
मगर वो कहा समझ पाई थी मुझको ..

मैंने किया था वादा उससे..
ता-उम्र उसके साथ जीने और मरने का
और उस रात उसकी मोजुदगी..
ने यूँ ऐसा असर किया मुझ पर
फिर कहा उस रात के बाद..
मैं कभी फिर से से मिल पाया था उसको

शुक्रवार, 9 दिसंबर 2011

कुछ इस कदर गुमनाम है वो शेहर .............

कुछ इस कदर गुमनाम है वो शेहर
जिसमें तो बसर करता है
मैं ठुन्ठ्ता हूँ , तुझे शेहर भर में
और तू मेरे अन्दर कही बसा हुआ
मुझे मिलता है

ये शेहर यूँ तो कब्रिशतान है
उन लोगो का
जो जिन्दा होकर भी मुर्दों की तरह जीते है

और इन्ही मुर्दों में
हम कोई जिन्दगी
तलाश करते है

तू हकीकत होके भी गुमनाम है इस शेहर में
और हम ज़माने भर में
तेरी तारीफे बयान करते है

कुछ इस कदर गुमनाम है वो शेहर
जिसमें हम तेरे होने का वजूद
तलाश करते है ,,......

मंगलवार, 6 दिसंबर 2011

पड़ोसन की झलक अच्छी लगती है .....

पड़ोसन की झलक अच्छी लगती है
मेट्रो में सटी हर लड़की अच्छी लगती है
यूँ तो फेर लेती है...
हर लड़की आँखे मुझसे
मगर मुझे उनकी हर अदा अच्छी लगती है

पड़ोसन की झलक अच्छी लगती है

कभी चोराहे पे, कभी गली, कभी पार्क और मंदिर में
उलझ जाना...... मुझे ......
उनके साथ हर घडी अच्छी लगती है
मेरे हर दिन और हर रात में शामिल है, वो
मुझे हर लड़की परी लगती है .

पड़ोसन की झलक अच्छी लगती है

किसी एक के साथ, मैं क्यूँ बिता दू
ये जिन्दगी अपनी ओ - जय
मुझे तो हर लड़की अपनी लगती है
मेरी मोहब्बत, मेरा प्यार
मेरी चाहत है इन सबके लिये
मुझे तो हर कोई फुलझड़ी लगती है

पड़ोसन की झलक अच्छी लगती है

मैं कुछ भी तो नहीं, क्या है ये हस्ती मेरी
मगर जब मैं, होता हूँ साथ इनके ,पास इनके
भले वो खुवाब ही सही
तब ये सारी दुनिया..
मुझे अपनी सी लगती है
मैं अधुरा हूँ , उनके बिना
और वो अधूरी है मेरे बिना
मैं उनकी, और वो मुझे मेरी खुसी लगती है
हर लड़की मुझे मेरी जिन्दगी सी लगती है

पड़ोसन की झलक अच्छी लगती है

सोमवार, 5 दिसंबर 2011

मेरी कब्र पे वो आये..

मेरी कब्र पे वो आये
तो मुझे सुकून मिला
वरना दुनिया ने
दफना दिया था
कब का मुझको
मरा समझकर..
जो तुम आये.
तो मैं हकीकत में मर सका..

रविवार, 4 दिसंबर 2011

जिन्दगी तेरे साथ बिताने की कसम खाई थी...

जिन्दगी तेरे साथ बिताने की कसम खाई थी
मैंने खुद ही अपनी दुनिया में आग लगाई थी
मेरे घरवालो ने, मेरे दोस्तों ने तो बहुत समझाया था मुझे
मगर मैंने खुद ही अपने खीसे में आग लगाई थी

लोग हँसते रहे मेरा तमाशा देखकर
मगर मैंने खुदी ही अपनी घिल्ली उड़ाई थी
४ दिन का साथ ना मिला हमको तेरी मोहब्बत में
और मेरी खुशियों से सरे बाज़ार,
इस दुनिया ने यूँ दुश्मनी निभाई थी

ये दुनिया ४ दिन का तमाशा है
ऐ - जय .................
, कोई हसता है
तो कोई अश्को में डूब जाता है
या खुदा ये ज़मी पे तुने कैसी
कैसी जन्नत बसाई थी

शनिवार, 3 दिसंबर 2011

जिन्दगी हर किसी का साथ नहीं देती ....

जिन्दगी हर किसी का साथ नहीं देती
हारकर जीत का एहसास नहीं देती
यूँ तो हर कोई चाहता है
अपने हिस्से की खुशिया
मगर किसी का होकर मिट जाना
ये बात, हर किसी में नहीं होती..

शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011

यूँ तो बदलाव....

यूँ तो बदलाव.....
जिन्दगी में एक नया मोड़ लाता है
पर जो रखते हो अपने दिलो में मैल
और धोखा...
उनके लिए या-खुदा - तू ही बता
किस तरह अपने आपको बदला जाता है..

गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

देखकर उसको....

देखकर उसको काश
ये दिल मेरा ना डोला होता
तो आज मैं ना गधा होता

उसकी हँसी को जो मैंने
ना अपने दिल से लगाया होता
तो आज बन्दा में भी काम का होता

इस दिल का धडकना
और उसका मुझको देख कर शर्मना
तीर जो उसका मुझ पर ना चला होता
तो आज मैं भी २ बच्चो का बाप होता

उसके इंतज़ार में और उसके भरोसे पे
काट दी मैंने अपनी ये उम्र सारी
और वो बन गयी और किसी की घरवाली

ख़ास मैं यूँ गधो का सरताज ना होता

देखकर उसको काश .
ये दिल मेरा ना डोला होता
तो आज मैं ना गधा होता