गुरुवार, 30 अक्तूबर 2008

मेरे घर के सामने

मेरे घर के सामने एक लड़की का घर है
नाम कल्पना , उम्र १६ साल, सुशिल माल दुरुस्त है
खुदा ने क्या खूब बनाया है उसको
सर से पाव तक क़यामत लगती है
वजन कुछ ज्यादा नही है आज कल के स्कूल
जाने वाले बच्चे के स्कूल बेग से एक आद पाव कम ही होगा
और खूबसूरती लाजवाब है
भेस के नवजात बछडे सी सुंदर है वो
लम्बाई पूछो मत
अगर कोई ५ साल का बच्चा बराबर में खड़ा हो जाए
तो बस उससे थोडी ही छोटी निकलेगी
इंतना सब होने पर भी उसमें
जरा से भी घमंड नही है
हर किसी से मुह फाड़के मिलती है
अपनी आँखे सामने वाले में इसे गदा देती है
की मजाल है एकपल को पलके झपक जाए
शर्माना उसका बिल्कुल छिछोरे मर्दों जैसा है
हर लिहाज से सभ्य भारतीय कन्या नज़र आती है
आमंतरण वो किसी को नही देती
लोग ख़ुदबा ख़ुद खिचे चले आते है
जब वो आँखों में लाली , होठो पे काजल सजाती है
बालो में khosla सा बनती है
कान और नाक में उसके कुछ अजीब से तंतु लटकते है
इतनी सी उम्र में उसने क्या कुछ कर दिखाया है
सरे मोहल्ले को अपना दीवाना बनाया है
उसका छिड़ना और लोगो का छेड़ना अब आम सा हो चला है
वाह रे मेरे मोहल्ले के लड़की तुझे देख के
में परेशान से हु आजकल
की तेरा आने वाला भविष्य क्या होगा
बनेगा ये sehar तेरा
या कही और मेरा garibkhana होगा

मेरे घर के सामने -----------------------------------------

मंगलवार, 21 अक्तूबर 2008

गर्ल कॉलेज

लड़कियों के कॉलेज के बहार लड़को का एअरपोर्ट होता है
हर एक लड़की ऐरोप्लाने और लड़का पैसेंजर होता है
देखकर वो हर एक सुंदरी को मोहित हो जाता है
चल बेटा चढ़ ले इसमें , वो सोचकर हर्षाता है
मगर कभी-कभी प्लेन क्रेश भी हो जाया करते है
खुद को तो कुछ नही होता , बस पैसेंजर सिधार जाया करते है
मगर ये दिल कहा बाज़ आता है दिल लगाने से
कभी गोरी, कभी काली,लम्बी , छोटी, मोटी
जींस ,सुइट वाली
इसको कुछ फर्क नही पड़ता है
ये हर किसी पे मरता है
बस एक अदद गर्ल-फ्रेंड के लिए सुबह-से -शाम तक
लाखो लैंडिंग का शोर सुनता है
कोई है जेट ऐर्वाय्स, तो कोई किंग फिशेर है
एयर इंडिया , सहारा का भी बोलबाला है
हर मॉडल कुछ न कुछ खास नज़र आता है
और होती है , कुछ हमारी तरह मोहब्बत वाली
आँख मिलते ही हम-तुम का रिश्ता बना लेती है
कोई दाने-कोई बिन दाने के आ फसती है
अजीब है, ये मोहब्बत का चलन देखो यारो
ये चाहती है की , इन्हें भी कोई देखे
और इनके हुस्न का चर्चा हो ज़माने में
मगर कम्बखत दिमाग नही है इनमें
ये १०० करोर के भारत में
९९, करोर , ९९, लाख, ९९ हज़ार ,९९९
में से सिर्फ़ एक को ही चुनती है
हर किसी का ये भइया से संबोधन करती है
जरा सोचो जो हमने भी चलन, चलाया , बहिन का
फिर तो हर लड़की सुरख्सीत और ख़ुद से शर्मिंदा सी होगी
हर तरफ़ रोड पे, बस में, ऑफिस में, कॉलेज में , मोहल्ले में
ढेर सारे भाइयो का प्यार होगा
फिर कौन छेड़ेगा उन्हे , ज़रा सोचे वो ख़ुद ही
जब ज़माने में बिहीन -भाई एकता संसार होगा
वो छिदे हम छेड एह तभी तो बात बनती है

क्यूंकि एक नही दो से मिलकर जोड़ा होता है
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गुरुवार, 9 अक्तूबर 2008

रावण मरा क्या

आज दशहरा है हर साल की तरह
आज भी रावण जलाया जायेगा
गली गुचो में , सड़क पर , मैदानों पर
हर तरफ़ पटाखों और आतिश बाजियों का
दोर चलेगा लोग झुमके नाचेंगे
और अपनी खुशिया का इजहार करेंगे
उस रावन के जलने पर जो की लकडियो
कागजो और न जाने कितने ताम झाम से बना है
सिर्फ़ और सिर्फ़ मनोरंजन के लिए उसका वजूद
बस कुछ पल के लिए है
लकिन लोग उसको जलता देख
इसी राहत महसूस करते है मानो उन्होंने
सच में असली रावण को जलता देखा है
जो बदी का पर्तीक था और उसे उसके कर्मो का फल मिला
मगर आपके और हमारे दिलो के अन्दर बसे रावन का क्या
जो ख़ुद कर्ज है , लालची है , दोखेबाज़ है , चालबाज़ है
सिर्फ़ अपनी सोचता है कभी किसी को फायदा तो नही पहुचाता
बस अपने नफे नुक्सान में उलझा रहता है
असली रावण वो नही था जिसने सीता का हरण किया था
फिर भी उस में सत्ये का वास था जो उसने सीता को
इतना समय तो दिया की जिसमें वो उसके दिल में समां सके
उसने उसपर कोई जोर जबरदस्ती या अपने सामर्थ्ये का पर्योग नही किया
तो रावण वो था या आज का इंसान है जिसमें हर दूसरा इंसान शामिल है
क्यूंकि उसमें अपना एहम पहले है की मुझे ख़ुद की सोचनी है अपनों की सोचनी है
हम रावन के रूप में रावन को नही जलाते बल्कि अपना डर जलाते है
की हम ख़ुद से डरे हुए है और अपने बच्चो के सामने झूठ पर्दाषित कर रहे है
ये दिखावा किस लिए जिस रावन को राम ने पर्णों के अन्तिम छनो में
दिल से लगा लिया हो तो उसका कद और वक्तित्व क्या रहा होगा
अब जरा सोचकर बताओ आप सब लोग की रावन वो था जो बरसो पहले अमर हो गया
या हम लोग है जो आज कलयुग में कलजुग का काल बने बैठे है


क्या सच में रावण मरा क्या ---------------------------------------------------------------

सोमवार, 6 अक्तूबर 2008

ये सड़क

ये सड़क दूर तक जायेगी
कभी हिंदू के मन्दिर
तो कभी मुस्लिम की दरगाह
सिखो के गुरद्वारे
ईसाईयों के गिरजा
ये हर जगह बिना भेदभाव के भरमंड करती है
कभी इसको अच्छे लगते है मन्दिर के भजन
तो कभी दरगाह की अजान
सिखो की गुरबानी , ईसाईयों के प्राथनाएं
इन सब में एक सा मनोहर है
और एक सा संदेश की इश्वर एक है
बस उसके नाम अलग-अलग है
उसके लिए नीच-उच्च
धर्म-अधर्म जैसा कुछ नही है
उसके यहाँ हिंदू, मुस्लिम, सिख , ईसाई नही होता
वो बस एक इंसान होता है
जिसके लिए धर्म का होना जरुरी नही है
बल्कि चार तत्व की महानता है
पृथ्वी ,जल , आकाश, वायु और कुछ नही है
अगर कही भेद है तो मुझमें है , मैं सड़क हूँ
इंसान नही आप लोग तो जहाँ चाहएं जा सकते हो
वो कोई सा भी डर हो , मगर मेरे भाग्य में
ये सब नही लिखा
मैं तो बस हर चोखट पर आके दम तोड़ देती हूँ
वो चाहएं किसी भी धर्म की हो
ये मेरी मज़बूरी है , बाहर -बाहर से ही मैं
आप लोगो के कर्म-काण्ड सुन सकती हूँ
और मुझे ख़ुद पे खुसी होती है
की भगवान् ने मुझे सड़क बनाया
मैं आज़ाद हूँ मुझ पर किसी का हक नही है
जहा रहती हूँ , खुस रहती हूँ
पर आप सब इंसान हो
बंधन मेरी मज़बूरी है आपकी नही
क्यूँ आपके दिलो में ये तेरा, ये मेरा
आता है , मैं सबकी हूँ
और आप सब मेरे
बाटना है तो एक-दुसरे से प्यार बात हो
मुझे और मुझ जैसे बेजुबान , लाचार सम्पदाओ को नही
मुझे न तो कोई रो क पाया है
और नही में कही रुक पाउंगी

ये सड़क -------------------------------------------------------------