बुधवार, 11 जनवरी 2012

मैं तुझे हर जगह महसूस करता हूँ

मैं, तुझे हर जगह महसूस करता हूँ
भीड़ में , तन्हाई में
बस तेरा ही एहसास करता हूँ

तू है हर जगह..
साथ भी और दूर भी ..
मैं, अब हवाओ से बात करता हूँ
मैं, तुझे हर जगह महसूस करता हूँ

वो चाँद भी आजकल मुझको
कुछ फीका-फीका सा लगता है
सारा आसमान
मुझको अब सुना-सुना सा लगता है
अब चाँदनी भी कहा पहले जैसी रही है
मैं, अब इस कायनात को
ही फजूल करता हूँ ..
मैं, तुझे हर जगह महसूस करता हूँ

ये "जय" यू तो बन्दा है एक अदना सा
और शायरी में तुक-बंदी कर लेता है
मगर जब आती है कलम इन हाथो में
और महसूस करता हूँ, मैं मोहब्बत तेरी
तो ग़ज़ल,नज्म, शायरी ना जाने
क्या-क्या,मैं किस्से तमाम करता हूँ
मैं, तुझे हर जगह महसूस करता हूँ

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