शनिवार, 22 अक्तूबर 2011

एक और दीवाना लुटा जाता है ...

एक और दीवाना लुटा जाता है
इस प्यार के बाज़ार में
जिसका कोई खरीददार नहीं
जो खरीद सकते अगर हम
तो खरीद लेते हम उसकी मोहब्बत को
मगर उसकी कीमत हमारी
जिन्दगी से भी ज्यादा निकली
हम तो बीके सरे-ऐ-बाज़ार
उसे पाने की हसरत लिये
और एक वो थी .....
जो हमारे करीब होते हुये भी
हमारी ना बन सकी
ये जिन्दगी की कीमत क्या
जो एक बार वो मिल जाती हमें
तो हम खुद ही उसपर
कुर्बान कर देते ये हस्ती अपनी.

कोई टिप्पणी नहीं: