शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2011

क्या- करते...

उनसे हम अपना हाल-ऐ-दिल बयान क्या करते.
वो सुबह थी,उनको शाम क्या करते.
वो धड़कते थे मेरे दिल में, मेरी सासे बनके
हम उनकी जिन्दगी तमाम क्या करते
उनके एक वादे पे हमने
खुद मिटा दी ये अपनी हस्ती
हम उनको कसूरवार क्या करते..

वो शामिल रहे हमेशा, हममे हमारी रूह बनकर
हम उनकी जिन्दगी का हिसाब क्या करते
हमें हमेशा जरुरत रही उनकी, जीने के लिए
फिर हम उनको अपना मोहताज़ क्या करते

वो सबकुछ थे, हमारे लिए
फिर हम खुद को उनमे तलाश क्या करते
ये जिन्दगी नाम थी, उनके
फिर उनको हम कोई और नाम क्या देते ..

ये जय यूँ तो नाम है, कभी ना हारने का
मगर जो खुद ही हार मान बैठा हो
फिर उसके जीतने की शर्त क्या रखते..

हारकर खुद को किसी के लिए
जीत भी जाते तो
उस जीत का क्या करते...

हम तो लहर है, समंदर की
जो माप आते, समंदर की गहराई अगर
तो उस समंदर से बराबरी क्या करते ..

उनसे हम अपना हाल-ऐ-दिल बयान क्या करते...

कोई टिप्पणी नहीं: