शुक्रवार, 6 जुलाई 2012

मैं इस दर से उठकर अब जाऊ तो कहाँ

मैं इस दर से उठकर
अब जाऊ तो कहाँ 
अब तुझको भूलाकर 
मैं और पाऊं तो क्या 
मेरी जिन्दगी का नूर थी तू 
मैं इस जिन्दगी से अब और चाहूँ तो क्या 
जख्म गहरे है,निशा छोड़ते है 
मैं अब तेरी यादो को खुद से मिटाऊ तो क्या 
मेरे दर्द की बस अब तू ही दवा है 
अब तुझे छोड़कर मैं जाऊ तो कहाँ 
दर्द जितना भी है 
मैं वो सब सह लूँगा 
पर अब मैं तुझको और सताऊ तो क्या

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