शनिवार, 18 फ़रवरी 2012

कल अकेले बैठकर ये सोचा था मैंने

कल अकेले बैठकर ये सोचा था मैंने
ये जिन्दगी हसीं है या की बोझिल
तो जवाब मिला ....
जो तू समझता है सब वैसा नहीं है
आग दरिया है
दरिया में आग
प्यार सस्ता है
रिश्ते बाज़ार में बेमोल बिका करते है
ये जिन्दगी अपनी होकर भी अपनी नहीं
और जो अपने है उनके लिए ये जिन्दगी
सच्ची नहीं ..

हर बात का सबूत
और हर चीज़ की कीमत है
प्यार के होठो पे झूठ
और दिल में भ्रम है
मैं किसको चाहता हूँ
इतना जो मेरा है
पर उसे मेरे प्यार पर शक है
ये जिन्दगी हसी है या की बोझिल है

मैंने कहा चाहा था कभी
सारी दुनियो की दोलत और नेमत को
मैं तो बस प्यार का भूखा था
बस उसकी की तलाश में था
और जो मिला मुझको
सच्चा कोई तो ये दिल लगा बैठा मैं उससे
जो आज पर्दा उठा
तो उसके लिए में एक दिल बहलाने का खिलौना निकला
ये जिन्दगी हसी है या की बोझिल है

अब गिला करू तू किस्से
और अपना दर्द सुनाऊ तो किस्से
और कौन मेरे भरोसे के काबिल है
एक जिसको दिया था ये दिल अपना जानकर
जब वही समंदर इस साहिल का दुश्मन निकला
कल अकेले बैठकर ये सोचा था मैंने
ये जिन्दगी हसी है या की बोझिल है

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