बुधवार, 23 मार्च 2011

वजूद

"उसकी नज़र में प्यार मेरा सवाल बना फिरता है
दिल में मेरे धड़कता है
मुझ पर हरसू जूनून सा उसका छाया रहता है
कसूर उसका नहीं ये मेरा है
जो उससे में दिल लगा बैठा
उसका मुझसे मिलना ,मेरी तरफ देखकर मुस्कुराना
उसकी हठी-ठिठोली ही रही
और मेरी बदनसीबी देखो बस इतनी रही
उस की हर बात को, में दिल से लगा बैठा
आज कल उसके दिन- रात तो रोशन है
चांदनी की तरह और में हूँ की रात-दिन
आवारों सा भड़कता हु , है ये मोहब्बत मेरी
या दीवानापन है, भीड़ में तन्हाई सी रहती है
आँखों में खूवाब से टीम-टीमाते है हर पल
अब तो खुदा ही, बचाए तो बचा ले मुझको
इस मोहब्बत ने मुझे, किसी काम का न छोडा है
"पहले लोग कसीदे पढ़ते थे मेरे नाम के "
और आज लोगो की जुबा पर मेरी बदनसीबी का किस्सा है
या खुदा किसी को न देना ऐसी नेहमत
जो अता तुने मुझको फरमाई है
अब तो सिर्फ दिल से ये ही निकलता है " आह बनकर "
( मेरे खुदा मेरे जेह नसीब ,मुकद्दर को बनाने वाले
जो हाल अपना हुआ है मोहब्बत में
वो किसी और का न करना
क्यूंकि हम तो शायर है
चोट खा कर , और गिरकर भी संभल सकते है
मगर आम इंसान में हिम्मत नहीं है इतनी
की टूटकर फिर से जुड़ जाए मूरत की तरह "

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