रविवार, 13 मार्च 2011

यादें

यादें कुछ खठी कुछ मीठी जिंदिगी के अतीत में ना जाने
क्या-क्या छोड़ जाती है
कभी हसाती है तो कभी रुलाती है
न जाने हमसे, कभी कितने हज़ार वादे लेकर कभी ना टूटने
का वादा करके और कभी एक छोटी से चुभन से
हमको ता-उम्र के लिए हमेशा के लिए बिखेर के तोड़कर चले जाती है

है अतीत की परछाई में कभी सो हसी के पल तो
तो कभी गम और तकलीफ के फशाने भी
कभी थे जो साथ हमारे हमेशा आज दूर है वो वो हमसे\
बस है तो सिर्फ याद ही उसकी बाकी
वक़्त हर वक़्त एक सा कभी नहीं रहता
जो आज है नसीब हमको वो कल हमेशा साथ नहीं रहता

अजीब है दस्तूर ये ज़माने का
लोग वादे तो करते है हमेशा साथ निभाने के लिए
मगर जब वक़्त नहीं टेहरता किसी के लिए
तो भला हमारी बिसात ही क्या है

जो आज है उसी को सम्भाल लो ऍ_दोस्त मेरे
कल के चक्कर कभी आज भी न निकाल जाये
अपने हाथो से
और बस फिर याद ही बनकर रह जायेंगे वो हमारी यादों में
जो आज सच है हमारे लिए

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