बुधवार, 20 फ़रवरी 2013

जगती आँखों से मैंने ये सपना देखा है


जगती आँखों से मैंने ये सपना देखा है
की मैंने तुझको अपनों बाँहों मं टूटते हुए देखा है
है हकीकत में जो नामुकिन सा मेरे लिए
मैंने वो खुवाब अपनी इन खुली आँखों से देखा है



हास्य कवि / शायर

(जयदेव जोनवाल )

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