मंगलवार, 30 दिसंबर 2008

एक दिल मेरा

एक दिल मेरा एक दिल उसका
बीच राह में उलझ गए
अब में निकलू पहले
या वो निकले सोच विचार में पड़ गए

टुकर टुकर वो मुझको देखे
में भी उस पर भो भो सा लाल्चाऊ
कभी लार गिरे मेरी पवन धरती पे
कभी में उसकी आँखों में बस जाऊ

थी उसकी हालत भी कुछ ऐसी
की वो पल पल शरमाये
बिल्ली सी
और पल में लोमडी सी मुस्कुराये
आँखों के वार बहुत हुए
दिल से दिल टकराया
वो मुझको अपना दोगी बना गई
मैंने उसको अपनी बिल्ली बना लिया

जीवन की उलझन सुलझ गई
में अकेले से दोकेला हुआ
अब उसके दिल में तेरु मछली सा मैं
वो में में करती मेरे दिल में

अब अपनी प्रेम khaaani suru हुयी
वो jungle rani में , jungle manav
अब प्रेम shudha में barshayenge
कभी jungle लव , कभी hatim tayi
sindbaad , विक्रम betaal
के जैसे faulaati tilishmi
dharohar iis duniya को दे जायेंगे

janmo तक याद रखे duniya
वो प्यार के देंगे हम
cahhye वो बने सोनिया
या में manmohan बन जाऊ
maya , jagjivan सा प्यार रहे
khushiya हो rabri lalu सी
इस duniya में chamke jailalita सा
लोग janmo तक याद रखे

है kripanidhaan है पालन करता
क्या khel rachaya tune
एक naari दी एक नर दिया
shrishti को baccho sang
taaro सा sansaar दिया


गुरुवार, 6 नवंबर 2008

दोस्त की शादी में

दोस्त की शादी में पंगा उल्टा पड़ गया
निकले थे हम सज सवर के की कोई
हमको भी मिल जायेगी
हमारे दिल की रानी
अपना भी घर बस जायेगा
मगर एन मौके पर ये किस्मत दगा दे गई
लड़की तो मिली नही
उससे मिलता जुलता एक आइटम अपुन के पीछे पड़ गया
पीछे से वो हुभा हु , लड़की जैसा ही था
धोके की कोई गुंजाईश नही थी
मगर कहते है न जो दीखता है वो होता नही है
भरी बारात में एक हमारी ही किस्मत खोटी थी
जो हमने जोड़ी अपनी बनने की सोची
छोड़ बैठे बरात का एंजोयमेंट और ये
karan जोहर रूपी काया के मोह जाल में फस बैठे

सुरुआत भले अपनी रही हो मगर
भूल चुक लेनी देनी होती है
मगर इन जैसे नारी रूपी मर्दों में
एक नज़र ही जिन्दगी की पूंजी होती है
हाथ धो के फिर वो जो पड़ा या पड़ी मेरी पीछे
यारो माफ़ करना वो था या थी मुझको ये माल्हुम नही है
मुझे to saari रात चिंता रही अपनी आबरू की
में अच्छा भला मर्द था उस शादी की रात से पहले
मगर जो दी कंपनी उसने तो आज शक होने लगा है
की कही कुछ हो न जाए आने वाले महीनो में

मुझे ख़ुद पर तो भरोसा है
मगर आज कल बदल जाते है इतिहास मिनटों में
क्यूंकि आज कल taadad इनकी रोके नही रूकती
आकडो में
हर गली में मोहल्ले में , जोराहो पे
शादी , पार्टियों में हर जगह ये मिल जाते है
अब तो होने लगी है इन लोगो की शादिया भी
भगवान् ने खूब दी है इनको ही अल्ला की दोलत भी
मेरा पंगा इनसे या इनकी जमात से नही है
मुझे तो तकलीफ है इतनी की ये लोग
नोर्मल को क्यूँ abnormal banaate है
छेड़ते उसको है जो इनसे मिलता नही किसी लहजे से
दोस्ती बन जाती है करण से शाहरुख़ की
दीखता है दोस्ताना गे वाटच का
फिल्मो में अमिताभ के लाल भी अब शामिल है
इन लिस्तो में
जॉन का बॉय फ्रेंड है अभिषेक
कुछ अजीब सा झोल झाल है आज की दुनिया का
एक तो पहले ही कम होती जा रही है
लड़को पे लड़कियों की संख्या
ऊपर से पुरूष पुरूष का होने लगा है देखो
अरे अगर ये yuhi चलता रहा तो क्या होगा
हमारे भुत और भविष्य का कहा से आएगा
वारिस apanii naslo का
कही हमारी

ये peedhi yun ही न khatam हो जाए
और हमारा itithas कुछ का कुछ हो जाए
मेरा तो पंगा भूल से fuse huaa था
और आप लोगो का जान bujhkar
jannat -ऐ- gayindia न हो जाए

दोस्त -=------------------------------------

गुरुवार, 30 अक्टूबर 2008

मेरे घर के सामने

मेरे घर के सामने एक लड़की का घर है
नाम कल्पना , उम्र १६ साल, सुशिल माल दुरुस्त है
खुदा ने क्या खूब बनाया है उसको
सर से पाव तक क़यामत लगती है
वजन कुछ ज्यादा नही है आज कल के स्कूल
जाने वाले बच्चे के स्कूल बेग से एक आद पाव कम ही होगा
और खूबसूरती लाजवाब है
भेस के नवजात बछडे सी सुंदर है वो
लम्बाई पूछो मत
अगर कोई ५ साल का बच्चा बराबर में खड़ा हो जाए
तो बस उससे थोडी ही छोटी निकलेगी
इंतना सब होने पर भी उसमें
जरा से भी घमंड नही है
हर किसी से मुह फाड़के मिलती है
अपनी आँखे सामने वाले में इसे गदा देती है
की मजाल है एकपल को पलके झपक जाए
शर्माना उसका बिल्कुल छिछोरे मर्दों जैसा है
हर लिहाज से सभ्य भारतीय कन्या नज़र आती है
आमंतरण वो किसी को नही देती
लोग ख़ुदबा ख़ुद खिचे चले आते है
जब वो आँखों में लाली , होठो पे काजल सजाती है
बालो में khosla सा बनती है
कान और नाक में उसके कुछ अजीब से तंतु लटकते है
इतनी सी उम्र में उसने क्या कुछ कर दिखाया है
सरे मोहल्ले को अपना दीवाना बनाया है
उसका छिड़ना और लोगो का छेड़ना अब आम सा हो चला है
वाह रे मेरे मोहल्ले के लड़की तुझे देख के
में परेशान से हु आजकल
की तेरा आने वाला भविष्य क्या होगा
बनेगा ये sehar तेरा
या कही और मेरा garibkhana होगा

मेरे घर के सामने -----------------------------------------

मंगलवार, 21 अक्टूबर 2008

गर्ल कॉलेज

लड़कियों के कॉलेज के बहार लड़को का एअरपोर्ट होता है
हर एक लड़की ऐरोप्लाने और लड़का पैसेंजर होता है
देखकर वो हर एक सुंदरी को मोहित हो जाता है
चल बेटा चढ़ ले इसमें , वो सोचकर हर्षाता है
मगर कभी-कभी प्लेन क्रेश भी हो जाया करते है
खुद को तो कुछ नही होता , बस पैसेंजर सिधार जाया करते है
मगर ये दिल कहा बाज़ आता है दिल लगाने से
कभी गोरी, कभी काली,लम्बी , छोटी, मोटी
जींस ,सुइट वाली
इसको कुछ फर्क नही पड़ता है
ये हर किसी पे मरता है
बस एक अदद गर्ल-फ्रेंड के लिए सुबह-से -शाम तक
लाखो लैंडिंग का शोर सुनता है
कोई है जेट ऐर्वाय्स, तो कोई किंग फिशेर है
एयर इंडिया , सहारा का भी बोलबाला है
हर मॉडल कुछ न कुछ खास नज़र आता है
और होती है , कुछ हमारी तरह मोहब्बत वाली
आँख मिलते ही हम-तुम का रिश्ता बना लेती है
कोई दाने-कोई बिन दाने के आ फसती है
अजीब है, ये मोहब्बत का चलन देखो यारो
ये चाहती है की , इन्हें भी कोई देखे
और इनके हुस्न का चर्चा हो ज़माने में
मगर कम्बखत दिमाग नही है इनमें
ये १०० करोर के भारत में
९९, करोर , ९९, लाख, ९९ हज़ार ,९९९
में से सिर्फ़ एक को ही चुनती है
हर किसी का ये भइया से संबोधन करती है
जरा सोचो जो हमने भी चलन, चलाया , बहिन का
फिर तो हर लड़की सुरख्सीत और ख़ुद से शर्मिंदा सी होगी
हर तरफ़ रोड पे, बस में, ऑफिस में, कॉलेज में , मोहल्ले में
ढेर सारे भाइयो का प्यार होगा
फिर कौन छेड़ेगा उन्हे , ज़रा सोचे वो ख़ुद ही
जब ज़माने में बिहीन -भाई एकता संसार होगा
वो छिदे हम छेड एह तभी तो बात बनती है

क्यूंकि एक नही दो से मिलकर जोड़ा होता है
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गुरुवार, 9 अक्टूबर 2008

रावण मरा क्या

आज दशहरा है हर साल की तरह
आज भी रावण जलाया जायेगा
गली गुचो में , सड़क पर , मैदानों पर
हर तरफ़ पटाखों और आतिश बाजियों का
दोर चलेगा लोग झुमके नाचेंगे
और अपनी खुशिया का इजहार करेंगे
उस रावन के जलने पर जो की लकडियो
कागजो और न जाने कितने ताम झाम से बना है
सिर्फ़ और सिर्फ़ मनोरंजन के लिए उसका वजूद
बस कुछ पल के लिए है
लकिन लोग उसको जलता देख
इसी राहत महसूस करते है मानो उन्होंने
सच में असली रावण को जलता देखा है
जो बदी का पर्तीक था और उसे उसके कर्मो का फल मिला
मगर आपके और हमारे दिलो के अन्दर बसे रावन का क्या
जो ख़ुद कर्ज है , लालची है , दोखेबाज़ है , चालबाज़ है
सिर्फ़ अपनी सोचता है कभी किसी को फायदा तो नही पहुचाता
बस अपने नफे नुक्सान में उलझा रहता है
असली रावण वो नही था जिसने सीता का हरण किया था
फिर भी उस में सत्ये का वास था जो उसने सीता को
इतना समय तो दिया की जिसमें वो उसके दिल में समां सके
उसने उसपर कोई जोर जबरदस्ती या अपने सामर्थ्ये का पर्योग नही किया
तो रावण वो था या आज का इंसान है जिसमें हर दूसरा इंसान शामिल है
क्यूंकि उसमें अपना एहम पहले है की मुझे ख़ुद की सोचनी है अपनों की सोचनी है
हम रावन के रूप में रावन को नही जलाते बल्कि अपना डर जलाते है
की हम ख़ुद से डरे हुए है और अपने बच्चो के सामने झूठ पर्दाषित कर रहे है
ये दिखावा किस लिए जिस रावन को राम ने पर्णों के अन्तिम छनो में
दिल से लगा लिया हो तो उसका कद और वक्तित्व क्या रहा होगा
अब जरा सोचकर बताओ आप सब लोग की रावन वो था जो बरसो पहले अमर हो गया
या हम लोग है जो आज कलयुग में कलजुग का काल बने बैठे है


क्या सच में रावण मरा क्या ---------------------------------------------------------------

सोमवार, 6 अक्टूबर 2008

ये सड़क

ये सड़क दूर तक जायेगी
कभी हिंदू के मन्दिर
तो कभी मुस्लिम की दरगाह
सिखो के गुरद्वारे
ईसाईयों के गिरजा
ये हर जगह बिना भेदभाव के भरमंड करती है
कभी इसको अच्छे लगते है मन्दिर के भजन
तो कभी दरगाह की अजान
सिखो की गुरबानी , ईसाईयों के प्राथनाएं
इन सब में एक सा मनोहर है
और एक सा संदेश की इश्वर एक है
बस उसके नाम अलग-अलग है
उसके लिए नीच-उच्च
धर्म-अधर्म जैसा कुछ नही है
उसके यहाँ हिंदू, मुस्लिम, सिख , ईसाई नही होता
वो बस एक इंसान होता है
जिसके लिए धर्म का होना जरुरी नही है
बल्कि चार तत्व की महानता है
पृथ्वी ,जल , आकाश, वायु और कुछ नही है
अगर कही भेद है तो मुझमें है , मैं सड़क हूँ
इंसान नही आप लोग तो जहाँ चाहएं जा सकते हो
वो कोई सा भी डर हो , मगर मेरे भाग्य में
ये सब नही लिखा
मैं तो बस हर चोखट पर आके दम तोड़ देती हूँ
वो चाहएं किसी भी धर्म की हो
ये मेरी मज़बूरी है , बाहर -बाहर से ही मैं
आप लोगो के कर्म-काण्ड सुन सकती हूँ
और मुझे ख़ुद पे खुसी होती है
की भगवान् ने मुझे सड़क बनाया
मैं आज़ाद हूँ मुझ पर किसी का हक नही है
जहा रहती हूँ , खुस रहती हूँ
पर आप सब इंसान हो
बंधन मेरी मज़बूरी है आपकी नही
क्यूँ आपके दिलो में ये तेरा, ये मेरा
आता है , मैं सबकी हूँ
और आप सब मेरे
बाटना है तो एक-दुसरे से प्यार बात हो
मुझे और मुझ जैसे बेजुबान , लाचार सम्पदाओ को नही
मुझे न तो कोई रो क पाया है
और नही में कही रुक पाउंगी

ये सड़क -------------------------------------------------------------

मंगलवार, 30 सितंबर 2008

उम्मीद

मैं उम्मीद हर दिल में बसती हूँ
कही किसी के लिए पलभर की खुशिया बनकर
तो कही किसी के लिए तमाम उमर का इंतज़ार बनकर
मुझसे चाह रखने वाले न जाने कितने
और उनको चाहतो को पुरी करने वाली सिर्फ़ और सिर्फ़ में एक
में हमेशा से हर किसी के लिए जीती -मरती आई
जब किसी को खुशिया मिलती है तो में में उसके साथ झुमके नाचती -गाती हु
और जब किसी का दिल टूटता है ये किसी का कोई सपना पुरा नही होता
में उस पल न जाने कितने जन्मो मरती हूँ
आज मुझे कुछ समय मिला और मुझे समझने वाला तो उसके
जरिये में आप तक अपनी आवाज़ पंहुचा रही हूँ
हमेशा से कसूर मेरा नही रहा बल्कि मेरे काम के बीच वो लोग आ जाते है
जीने सिर्फ़ अपने से मतलब होता है , चाहें उसके बदले लोगे के सपने
टूटे तो टूट जाए , कोई मरे - तो मरे उन्हे किसी से कुछ नही लेना देना
एसा मेरे साथ एक बार नही कई बार हुआ
लकिन आप सब को कुछ याद नही होगा
बात उन दिनों की है जब हिन्दुस्तान एक था इसका बटवारा नही हुआ था
सब लोग मिलकर रहते थे
मगर तब भी कुछ लोग ने अपनी सोची और देश का भला चाहने वालो की बात दबा दी
उसके बाद दूसरा मौका तब आया १९८४ में उस वक्त मेरा देश तरक्की पर था
और जल्द ही विश्व का सबसे बड़ा राष्ट बन जाता
मगर वो हुआ जो कुछ लोग चाहतें थे
हमेशा से सिर्फ़ चंद लोगो की खातिर ही
मेरे हिन्दुस्तान का चेहरा बदलता रहा है
मेरी तो सिर्फ़ चलती थी १८५७ के ज़माने में
जब लोग एक हुआ करते थे
और उन्होंने एक आवाज़ में अंग्रेजो के ख़िलाफ़
विद्रोह का डंका बजा दिया और उन्हें ये देश छोड़कर जाना पड़ा
उस जामाने को बीते सदिया हो गई
आज तो मेरे देश में ही मेरा वजूद नही है
हर तरफ़ भरष्टाचार है ,लालाज़ है, असं-तोष है
लोग अपने लिए जी रहे है , चाहए उसके लिए उन्हें अपनों का ही लहू क्यूँ न बहाना पड़े
अब में ये सब देख कर थक गई हु, ख़ुद से हार चुकी हूँ
अब अगर कुछ हो सकता है और कुछ किया जा सकता है तो वो आप लोग को करना है
किसी को दोष नही देना , किसी को बुरा नही कहना , किसी से लड़ना नही
बस अपने -अपने दिल में झाक कर देखो
और ख़ुद से बाद करो और ये फ़ैसला लो की आज तक जो तुमने किया
उसमें कितना अपने देश के लिए था और कितना ख़ुद के लिए
आप लोगो को ख़ुद मेरी पीडा और दुःख समझ आ जायेगा की में इतनी दुखी क्यूँ हु

जो हुआ उसे स्वीकारने की हिम्मत रखो
तुम हिन्दुस्ता का दिल हो
तुम सब में बसती है
जावा हिन्दुस्ता की धड़कने

शुक्रवार, 26 सितंबर 2008

सड़क किस की है

ज़माने का नया दस्तूर देखिये बदल गए है लोगो के पहनावे और तोर--तरीके
फिर भी न जाने क्यूँ कुछ लोग अपनी ही दुनिया में रहते है ,सड़क को सड़क नही
कुश्ती का अखाडा समझते है , बात बीते सोमवार की है जब में करोल bagh मार्केट
में था और किसी काम से रोड क्रोस कर रहा था , मैंने देखा सामने से एक कार बहुत
तेज़ी से आ रही है , मैंने ख़ुद को संभाला और बच गया अब बात यहाँ कहा ख़तम होनी थी
वो कार सामने से आ रहे एक रिक्शा वाले से जा टकराई और उसका रिक्सा पलट गया
अब गलती देखी जाए तो कार में बैठे लड़के की थी , मगर वो टकराया रिक्सा से वाले से था तो इस लिए वो दोषी होकर भी दोषी नही बल्कि निर्दोष था , अब कार से निकलते ही उस लड़के ने और उसके दोस्त ने रिक्सा वाले पर जो हाथ-पाई और गालियों का भावः भंगिगम दृश्य पर्स्तुत किया उसे देखकर कुछ लोग तो खुस थे और मन ही मन ये चाह रहे थे की बेचारे रिक्सा वाले की गलती नही है फिर भी ये लोग उसे मार रहे है , वहां लोगो का हुजूम था लकिन किसी ने ख़ुद को इतना कष्ट नही दिया की वो उस निर्बल इंसान की मदद को आगे आए
और दुःख तो इस बात का था वो लोग पढ़े लिखे होकर बिल्कुल असभ्य इसान की तरह बात कर रहे थे , न तो वो किसी की सुन रहे थे और नही किसी को कुछ कहने दे रहे थे
उनमें से एक बोल रहा था , तुम लोगो को परमिट किसने दे दिया यहाँ रिक्क्सा चलाने का तुम्हारी वज़ह से ही हर शहर की आबादी बाद रही है तुम गरीब लोग पैदा ही क्यूँ होते है
जिन्दगी में तुम कुछ कर तो पाते नही हो जहा पैदा होते हो वही मर जाते हो
दो वक्त की रोटी तो तुमसे जुटा नही पाते और आ जाते हो बड़े शहर में भीड़ को और ज्यादा करने के लिए तुम लोग बोज हो ख़ुद पर और देश पर तुम्हे जीना का कोई हक नही है
इसके बाद दूसरा लड़का बोला में जो कह रहा हूँ वो बकवास समझ आ रही है या नही ये जो तुने नुकशान किया है न गाड़ी का तुझे देना होगा , जिस इंसान को १० रूपये के लिए १० किलोमीटर रिक्सा खीचना पड़ता हु वो बेचारा ५०० या १००० कहा से देगा
लोगो ने उन्हे खूब समझाया पर वो मानने को तेयार नही थे
इतने में से एक बुजुर्ग अंकल आए उनकी उमर ६० या ६५ के करीब थी उन्होंने पहले जानने की कोशिश की की माज़रा क्या है , फिर वो बोले बेटा आपका नाम क्या है एक ने कहा अंकल मेरा नाम सूरज है , और दुसरे ने कहा और मेरा आकाश अंकल बोले की आप दोनों के नाम इतने अच्छे है फिर आपको ये तो समझना चाहिए की आप लोग तो अपने नाम की तरह आलिशान घर में रहते हो और, आपकी गाड़ी भी कितनी बड़ी है अभी आपने ख़ुद से कुछ नही किया है तभी आपको ५०० रूपये बहुत लगते है और आप सोचते हो की ये रिक्सा वाला वो दे देगा लकिन बेटा ये गरीब रोज़ १० रूपये के लिए १० किलोमीटर रिक्शा खिचता है तो इस हिसाब से आप लोगो को इंतज़ार करना पड़ेगा जब ये ५० चक्कर पुरा कर लेगा तो आपको लौटा देगा आपके पैसे आप तब तक रुकोगे यहाँ ये बात सुनकर वो दोनों अजीब मुद्रा में सोचने लगे और बोलने लगे नही अंकल हमें बहुत काम है हम नै रुक सकते हमें पैसे नही चाहिए रहने दीजिये
इसके बाद अंकल ने कहा बेटा ये भीड़ गरीबो ने नही बल्कि इंसान की अविष्कारों ने बडाई है
पहले इंसान कम थे मोटर गाडिया नही थी लकिन इंसान ने अपनी सुविधा देखी और आज उसका नतीजा ये है इतनी भीड़ हो चुकी है आज हां इंसान कम और मोटर-गाडिया ज्यादा दिखाई देती है
अब इंसान गरीब होतो रिक्सा चलाकर पेट भरना चाहए तो लोग उसे ग़लत निगाहों से देखते है ये देश सबका है ये सड़क सबकी है , लकिन इंसान सबका नही है जो जैसा है ख़ुद को महान समझता है अब तुम लोग जब एक जगह निकलोगे तो टक्कर तो होगी
मेरा देश हिन्दुस्तान तरक्की तो जरुर कर रहा है लकिन यहाँ के बाशिंदों मेंं अपने नित-नये
अविष्कारों से लोगो में द्वेष भर रहा है ,
आज बात सड़क कि है , ये किसकी है , कल बात देश की होगी ये आमिरो का है या गरीबो का या फिर नाम वालो का और इसमें किसका कितना हिस्सा है

मंगलवार, 23 सितंबर 2008

प्रेमी - प्रेमिका

अजीब सा रिश्ता है, ये प्यार का कही भी बन जाता है
कभी हो जाती है सेटिंग स्कूल में , तो कभी कॉलेज में
या अपने घर के सामने वाली खिड़की में
या फिर राह चलते या फिर सफर के सफर में
आज कल तो सेटिंग होने लगी है, मंदिरों में भी यारो
सजके आते है , आशिको के चच्चा , लैलाओ की नानी
घरवाले सोचते है की आज कल आस्तिक हो गया है बच्चा अपना
पर वो कही और ही गुल KHILATA है,, माँ वैष्णो देवी की जगह
पूजा वर्मा के चक्कर लगता है
लड़किया भी कुछ कम नही है आज के दोर में देखो
घर से निकलती तो ये kehkar की आज टूशन या सहेली के घर उसकी बर्थडे पार्टी है
मगर वो पार्को में और सिनेमा होल्लो में नन्हे आशिक बने फिरते है
चाहें ख़ुद की औकात नही हो चवन्नी की मगर गर्ल-फ्रेंड में पे वो हजारो रोज़ khrachte है
और लड़किया चुपके -चुपके सायानी हो चली है , खाया-पिया murgaa ही फसाती है
ख़ुद तो उसे रोजे खाती है और कभी कभी अपनी सहेलियों के लिए भी छोड़ जाया करती है
मोबाइल के चक्कर में प्यार सस्ता हो चला है , कट -कॉपी पेस्ट से दिल का हाल बाया होता है
जो न जानता हो शायरी का जुमला भी वो लाखो शेर मिनटों में अपनी प्रिये को फॉरवर्ड करता है
प्रेमी ने कहा
मेरी जान तू मेरा ईमान तू
तू इस कदर मुझ में समां गई है
में ख़ुद को तो अक्सर भूल जाता हु
मगर जब भी तू याद आती है
तुझसे मिलने को जुलाब सा मचलता है दिल

पेर्मिका ने कहा
मेरे महबूब , मेरे जानू
तू ही तू अब तो दिल में ujhlataaरहता है
ये तेरा नशा है , या फिर तेरी मोहब्बत है
आज कल तो मेरा अब्बू भी पूछता है मुझसे
बेटी ये तेरे मोबाइल पर किस कम्बखत का चेहरा है

प्रेमी ने कहा
तेरे अब्बू को तू बस इतना kehde
है ये मेरी जान कोई paraya nai है
अभी है ये मोबाइल पर,, कल अपने घर में होगा
उससे जो ukhadta है ukhaad ले वो
kyunki वो आशिक है मेरा , नही मिलती उससे उसकी सूरत

प्रेमिका ने कहा
मेरे आशिक मेरी मोहब्बत के rakhwale
मेरे अब्बू को प्यार अपना समझ नही आता है
तू leja mujhai घर से अपनी bana ले
kyunki मेरा बाप लगा है
तेरी talaash में tamam pagal khano में

प्रेमी ने कहा
tujhko chahna शायद भूल थी मेरी
तेरी खातिर में अपना sara बैंक balance uda baitha
अपने gharwalo और dosto में बदनाम हो गया हु
और tune भी khub nibhayi aashki मेरी
जो भी खाया पिया मेरे paiSO से
फ़ोन करता रहा TUJHKO में BARSO से
और तू है आज सुन लेती है की में PAGAL हु
तू JA और कही किसी और से अब ISHQ FARHMA
KYUNKI THIK ही कहा है BUJURGO ने
ये AASHIQI नही nibhti ladakpan में
ये नई -naveli fulljhadiyo से

शनिवार, 20 सितंबर 2008

गुरुदेव-सीसी-जूसी व जयजयवंती परिवार


गुरु जी द्वारा चेलों का सम्मान





राजू की शादी


चार बच्चो के परिवार में
राजू सबसे छोटा था
रमेश, सुरेश, सविता में
वो सबसे भोला था
उम्र से कुछ नादां और
कद में कुछ नाटा था
शायद भगवान् ने कुछ
ठीक नही किया था साथ उसके
परिवार में तो
था ही वो छोटा
कद में भी उसने कंजूसी कर दी
एक अच्छे खासे लड़के की
जग हसाई कर दी
कद ४" १ इंच , शरीर पतला
रंग साफ़ लड़का कम
गन्ना ज्यादा नज़र आता था
लोग देखकर उसको
कहकहें लगाते थे
अरे देखो ये
जनाब भी खूब है
हर चीज़ खुदा ने
तोल-मोल के दी है इनको
तभी तो न कद से
न sharir से
न उम्र से ये कुछ ज्यादा है
अरे ये इंसान कम
दूसरी दुनिया का अलिएन ज्यादा है
ये वक्त यु ही चलता रहा
बात शादी की
जब आई छोटे मिया की
तो हर लड़की देखकर
उनको आहे भरती थी
"है" भगवान् इस टाइप के
मॉडल भी बनाता है "
जो शकल और सरीर के
हुलिए से दुसरे मुल्क के नजर आते है
जो हुई शादी इससे तो में तो जीते जी मर जाउंगी
इस भरी दुनिया में हुकुम-ऐ-बोर्नविटा कहलाऊंगी
हर किसी ने सो बहाने बनाकर न कर दी
इस भरी दुनिया में कोई न मिला छोटू राजू को
हार कर बैठ गया था वो अपने गम के अफशाने में
तो कही से एक किरण आई बनके उसकी जिन्दगी में
अरे एक लड़की है कही दूर के
"रिश्ते" में देखने में मुझ जैसी ही है ,छोटी , पतली और मेल सरीका है दोनों का
एक सा हाल -ऐ- करिश्मा है
बात चलायी तो बात बन बैठी एक नाटे को एक नाटी मिल बैठी
जोड़ी कमाल लाखो में एक थे वो
हर कोई देखकर उनको दुआए दे रहा था
शादी के दिन एक चूहे और एक चुहिया का मेल हो रहा था
अब ठीक ही कहा है, ऊपर वाले ने हर किसी का दिन आता है
और हर किसी को कोई न कोई मिलता है
बड़ी धूम धाम से राजू का विवाह सम्पन हुआ
और उसको दुल्हन सुख नसीब हुआ
अब तो चिंता है "ये की "आगे क्या होगा
जब उनके बच्चे होंगे
क्या वो राजू या उसकी बीवी के जैसे होंगे
या कुछ नया ही पनपेगा इन दोनों के मिलने से
एसा नो हो कोई जन्मे विस्फोट नया
या हो वो "अलिएन" या हो कोई अनुबम्ब नया
जो bhi ho अजब raha राजू का जीवन सारा
जब हुआ पैदा तो माँ- बाप हेरा थे
आज जो की है शादी तो zamaane कों चिंता है उसकी
वो आज भी अजूबा है, बरसो पहले जो था।

शनिवार, 13 सितंबर 2008

एक परिंदा

(आज मेरा जन्मदिन है तो ये कविता मेरे माता-पिता और मेरे गुरु जी अशोक चक्रधर को समर्पित है)


आज के दिन एक परिंदा
आसमान से आया था
कुछ इस दुनिया को देने

कुछ इस दुनिया से लेने आया था
नाम उसका जयदेव रखा था

माता-पिता ने चाव से
बचपन से था बड़ा शांत वो

कुछ कहते थे दब्बू है
दुनिया से मिलना-जुलना

चिकनी-चुपडी बातें
कहाँ उसको आती थीं
किंतु था वो
अपनी धुन का पक्का
खोया रहा वो सपनो में
पलटा जो समय का पहिया तो

दुनिया ने उसकी सुध ली
आज कहे कोई कवि उसको

कोई शायर तो कोई
गीतकार कहता है
गुरु मिला है उसको
अशोक चक्रधर सा महान
जो हर पल उस पर

अपनी कृपा-दृष्टि धरता है
अब पलट गए हैं

दुनिया के चेहरे
और उनकी सोच भी

कल तक थे जो बेगाने
आज हंसकर मुझसे मिलते हैं
सब महिमा है ऊपर वाले की

उसने ही किया कमाल
मैंने तो चाहा बस इतना ही

दूर गगन की छाव में
किसी को देना सुख के मोती

किसी के दुःख को साझा करना
मैं कल भी वो ही था

आज मैं जो हूँ
पर न समझे जो नादान थे
मैं शब्दों का महारूप विकराल
जो आता है दिल में कह देता हूँ

मैं न सोचूँ आज और कल की
मैं मस्त परिंदा आसमान का

वर्षों पहले इस धरा पर आया था।




शुक्रवार, 12 सितंबर 2008

जूसी और सीसी


कवि जयदेव जोनवाल उर्फ़ जूसी अपने मित्र सीसी के साथ।

गुरुवार, 11 सितंबर 2008

गुरु और चेले


कवि जयदेव जोनवाल उर्फ़ जूसी अपने गुरु श्री अशोक चक्रधर व अपने मित्र सीसी के साथ।

सोमवार, 1 सितंबर 2008

कविता

कवि की कल्पना ओ से कविता जनम लेती है
बन जाती है , वो खुबसूरत , जो हो उसमें हुस्न और इश्क शामिल
रहती है , वो यादो में नया इतिहास रचती है

कवि -----------------------------------
कोई लड़की अगर देखो तो कविता उसमें दिखाई दे
चेहरे से चांदनी छलके , होठो से मय का समंदर
नैन काजल से काले हो , जुल्फों में सारा ज़माना
रहो तुम देखते उसको, वो हरपाल तुमको याद रहती है
कवि ---------------------------------------
जो लग जाए प्यार का चस्का तो कविता रंग बदलती है
बने पल में सब बेगाने, खुदा को वो भुला दे
ये ही है , दस्तूर मोहब्बत का ये दुनिया बदलती है

कवि ----------------------------------------------

न समझे कोई कवियों को करे बस तारीफ कविताओ की
कोई तो ये ज़रा कह दे , हम है तेरे
तेरा हम हाथ थामेंगे , रहेंगे बस हमेशा तेरे
तेरी ही कविताओ में समायेंगे , बनेगे शब्द हम तेरे
तेरी कलम जो कहती है

कवि ----------------------------------

ममता

माँ के मर्म से बड़ा कोई मोल नही है
जहा में माँ से बड़ा कोई और नही है
पैदा जो हुए तो दर्द इसने सहा, जो रोये कभी तो सिने से लगा दिया
नही उतर सकेंगे इसका क़र्ज़ हम , क्यूंकि ये हिसाब कुछ रुपयो का नही है
माँ --------------------------
चलना सीखाया इसने, ठोखरlलगी तो उठाया
तुतलाए जब भी हम , हमें बोलना सीखाया
ये पहला अध्याय अपना , ये पहली क्लास अपनी
ये गुरु हमारा , हमारी पहचान इससे इसकी पहचान हमसे नही है

माँ ----------------------------
जो हो गए बड़े हम तो क्यूँ इसे दुत्कारे
तोडे रिश्ता ख़ुद का इससे ,क्यूँ इसे bhulaye
कभी थी इसकी duniya हमसे
आज हमारी duniya में ये नही है
माँ -------------------------

जो मर गए हम तो faishla ऊपर bhagwan भी करेगा
jeenhone dukhaya होगा माँ का दिल unhai नरक में bharega
bhagwan ने बनाया , माँ को ख़ुद के rupe में
हर एक घर में इसका मन्दिर, ये माँ है murat तो नही है

माँ ---------------------------------------

रविवार, 31 अगस्त 2008

ब्लू-लाइन और यमलोक

ब्लू - लाइन की मार से बढ गया यमराज ऑफिस का कामकाज
पहले करते थे ड्यूटी ८ घंटे की अब कम पड़ता है २४ घंटे का भी अन्तराल
यमदूतो की शिकायते अक्सर यमराज से होती है
ye ड्राईवओए के हरकते क्यूँ दिनाबर diबढती है
इसको मारा , उसको कुचला हाल जनता का बेहाल किया
करनी -धरनी सब इन ड्राईवर ओह की
क्यूँ बेमतलब हमारी डाटा लिस्टओ का हुआ भरमार
ब्लू -लाइन --------------------------
पहले घरवाली से बातें फ़ोन और चेत्त्तिंग स होती थी
अब ईमेल करना भी मुश्किल है
घर जाए तो एक अरसा हुआ
है यमराज है प्राण हरता अब कुछ तो करो इस विपदा में
या तो लाओ यमलोक में भी ब्लू - लाइन या बंद करो
जान लेने , लाने का कारोबार

ब्लू -लाइन ------------------------------------

शुक्रवार, 22 अगस्त 2008

में सेकंड हैण्ड

पापा ने की पहली शादी तो में हुआ
जो मर गई माँ मेरी तो आई नई मम्मी
फिर तो में शो पीस से सेकंड हैण्ड हुआ
पापा ------------------------------
पहले थी मेरी धाक इतनी की हर चीज़
बिन मांगे और बहुतायात में मिलती थी
रोना- धोना अपना बोनस था
हर नज़र हमपे थमती थी
जो मर गई माँ मेरी तो " डेडलाइन" मेरा हर सपना हुआ
पापा -------------------------

बड़ी मगरूर है किस्मत जो बाज़ी उसने यु पलती है
पहले था में शेंशा आज पापा की दिवाली है
कहा मेरा मानती थी वो, जो मेरी अपनी माँ थी
अब कहा सुनते है, मेरे पापा, जबसे नई मईया पधारी है
रहू में ताकता उनको , वो सीएम , पिम और आम जनता
सा हाल मेरा हुआ

पापा ---------------------------------

गुरुवार, 21 अगस्त 2008

मॉडल

एक दिन हमारा दिल एक लड़की पे आया था
था उसका कुछ मॉडल एसा जो हमारी नजरो को भाया था
चलती थी वो कुछ इसे जैसे नागिन चलती है
रूकती थी वो कुछ इसे जैसे छिपकली रंग बदलती है
नजरो से उसके गिरते अंगारे थे
जो देख ले कोई उसको तो डर के मारे मर जाए
भूतनी जैसे कुछ उसके इशारे थे
जो हस्ती थी तो लगता था तूफान है आया
जो चुप होती थी तो लगता था, है चुडेल का साया
मकेउप कुछ उसने अपने थोफ्ह्दे पे इसे लगाया था
आँखों के काजल को होठो पे सजाया था
होठो की लाली को आँखों में बसाया था
गजरा था कुछ उसका एसा जैसे शेरनी की मांड हो
कान और नाक में उसने उंगलियों को लटकाया था
इसी थी वो लड़की जिसने टोना अपना हम पे चलाया था
एक बदनसीब में ही बचा था जो उसके काबू में आया था

एक दिन ---------------------------------------

मंगलवार, 12 अगस्त 2008

अनपढ़ लुगाई

अनपढ़ लुगाई के हाथों

बरबाद हो गया

में तो शादी की

पहली ही रात

देवदास हो गया

मैंने कहा उससे

हाउ आर यू?

जवाब मिला

मैं लालचंद की छोरी हूँ

मैंने पूछा

व्हाट यू फील आफ्टर योआर मैरिज़?

उसने कहा खंडी चोखी

लागे थारी इंग्लिश

प्यार की थी

वो पहली रात

अपनी इंटरओदुच्शन में ही

अपना केस फाइल हो गया

किसी तरह रात गुजरी

और सुबह आई

अनपढों की महारानी

चाय में ऊँगली डाल लायी

मैंने कहा उससे

इतना कष्ट क्यूँ किया

उसने कहा

मैं तुम्हारी अधमरी हूँ

वाह री अर्धांग्नी को

अधमरी कहने वाली

तू मेरी अधमरी

मैं तेरा अधमरा हो गया।

अब तो आदत सी

उसकी हमको हो गई है

कहती है ब्लडीफुल तो

ब्यूटीफुल समझ लेते हैं

वो है बहुमत ख़ुद को

समर्थन में भर लेते है

जिन्दगी है छोटी

न जाने कब क्या हो जाए

है वो अनपढ़

फिर भी मीठी और

सच्ची बातें करती है

लाख पढों लिखों से भला

उस एक अनपढ़ का साथ हो गया ।

शनिवार, 9 अगस्त 2008

बस

बस के सफर में

कुछ अजीब सा माहौल

हमसे पेश आया

लड़कियों को मैं भइया

और औरतो को मैं

भिखारी नज़र आया

बस थी भरी तो

इस में मेरा

कसूर क्या था

पुरूष तो थे

एक आध दर्ज़न

बाकी बस औरतों से भरी थी

जहा भी पैर रखा तो गाली

जो हिला तो थप्पड़

उन्हे मैं इकलौता इंसान

हाथ साफ़ करने का

tissue पेपर नज़र आया।

चलो खूबसूरत लड़कियों ने

मारा था तो अच्छा था

पर क्यूं बदसूरतों ने

अपना हाथ साफ़ किया

कुछ तो थीं उनमें

हिलती-दुलती चाचियाँ भी शामिल

जिनका चलना-फिरना ही

एक करिश्मा था

किस तरह तोडा उन्होंने

एक नादान से बच्चे को

जैसे वो सब कबाडी

और मैं उन्हें हाथ साफ़ करने का

tissue पेपर नज़र आया।

jaidev kumar jonwal

गुरुवार, 7 अगस्त 2008

है तुमसे खुशी ऐ मेरे दोस्त


हर पल है खुशियाँ

हर राह है सुकून

हर अहसास में रवानगी

हर चाह में जूनून

अब तो मानो जिंदगी

मुट्ठी में लगती है

मांगते हैं तारे तो

चाँद हाथों तले होते हैं

खोजते हैं जिंदगी तो

कायनात कदमो तले

अठखेलियाँ करती है


बदल गया है अब

हमारी जिंदगी का

फलसफा और अंदाज़

हर कोई कहता

और पूछता है की

क्या बात है

आजकल आप कुछ

अजीब से पेश आते हो

होठों पे हँसी

आँखों में चमक और

बोली में मिठास और

साँसों में महक

ये सब कहाँ से सीखा है

मैं बस ये ही कहता हूँ


है ये मेरे दोस्त का सिला


वो आसमान से

ज़मीं पर आया है

मुझे अपना दोस्त और

तलबगार बनाया है

वरना मेरी कहाँ थी हस्ती।

मैं सिर्फ़ तेरी रह गुज़र हूँ


जो मैं हूँ

हंसता खिलखिलाता

भला कभी काटों ने भी

खिलना सीखा है

या कभी पतझड़ भी

बहार लायी है

जो है वो है

मैं तो सिर्फ़

और सिर्फ़ तेरी

रह गुज़र हूँ।

ऐ मेरे दोस्त।