आज दशहरा है हर साल की तरह
आज भी रावण जलाया जायेगा
गली गुचो में , सड़क पर , मैदानों पर
हर तरफ़ पटाखों और आतिश बाजियों का
दोर चलेगा लोग झुमके नाचेंगे
और अपनी खुशिया का इजहार करेंगे
उस रावन के जलने पर जो की लकडियो
कागजो और न जाने कितने ताम झाम से बना है
सिर्फ़ और सिर्फ़ मनोरंजन के लिए उसका वजूद
बस कुछ पल के लिए है
लकिन लोग उसको जलता देख
इसी राहत महसूस करते है मानो उन्होंने
सच में असली रावण को जलता देखा है
जो बदी का पर्तीक था और उसे उसके कर्मो का फल मिला
मगर आपके और हमारे दिलो के अन्दर बसे रावन का क्या
जो ख़ुद कर्ज है , लालची है , दोखेबाज़ है , चालबाज़ है
सिर्फ़ अपनी सोचता है कभी किसी को फायदा तो नही पहुचाता
बस अपने नफे नुक्सान में उलझा रहता है
असली रावण वो नही था जिसने सीता का हरण किया था
फिर भी उस में सत्ये का वास था जो उसने सीता को
इतना समय तो दिया की जिसमें वो उसके दिल में समां सके
उसने उसपर कोई जोर जबरदस्ती या अपने सामर्थ्ये का पर्योग नही किया
तो रावण वो था या आज का इंसान है जिसमें हर दूसरा इंसान शामिल है
क्यूंकि उसमें अपना एहम पहले है की मुझे ख़ुद की सोचनी है अपनों की सोचनी है
हम रावन के रूप में रावन को नही जलाते बल्कि अपना डर जलाते है
की हम ख़ुद से डरे हुए है और अपने बच्चो के सामने झूठ पर्दाषित कर रहे है
ये दिखावा किस लिए जिस रावन को राम ने पर्णों के अन्तिम छनो में
दिल से लगा लिया हो तो उसका कद और वक्तित्व क्या रहा होगा
अब जरा सोचकर बताओ आप सब लोग की रावन वो था जो बरसो पहले अमर हो गया
या हम लोग है जो आज कलयुग में कलजुग का काल बने बैठे है
क्या सच में रावण मरा क्या ---------------------------------------------------------------
3 टिप्पणियां:
रचना अच्छी है लेकिन कोशिश करे रचना को एक प्रवाह देने की।
vaaha kya likhate ho
waah kya likhte ho
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