जिन्दगी भी अजीब है
सोचो कुछ तो कुछ मिलता है
मांगो खुशिया तो गमो में लिपटा लिबास मिलता है
ये चाहत कब पूरी होती है
किसी को चाहने से .
जब ये मुकद्दर ही खुद अपना खराब होता है
जिन्दगी भी अजीब है
सोचो कुछ तो कुछ मिलता है
मैंने कब मांगी थी सारे जहा की खुशिया
बस एक अपने प्यार का, प्यार ही तो माँगा था
और उसपे इस ज़माने की दुश्मनी देखिये मुझसे
जो मिला मेरा खुदा मुझसे तो वो भी बेवफा निकला
जिन्दगी भी अजीब है
सोचो कुछ तो कुछ मिलता है
मेरे दुशमन यूँ तो थे दुनिया में सभी
और मैं सबकी निगाहों में खलता था
मगर ये दिल टुटा ..
उसके ही हाथो
जिसपे मुझको खुदसे ज्यादा भरोसा था
जिन्दगी भी अजीब है
सोचो कुछ तो कुछ मिलता है
मांगो खुशिया तो गमो में लिपटा लिबास मिलता है
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