कुछ इस कदर गुमनाम है वो शेहर
जिसमें तो बसर करता है
मैं ठुन्ठ्ता हूँ , तुझे शेहर भर में
और तू मेरे अन्दर कही बसा हुआ
मुझे मिलता है
ये शेहर यूँ तो कब्रिशतान है
उन लोगो का
जो जिन्दा होकर भी मुर्दों की तरह जीते है
और इन्ही मुर्दों में
हम कोई जिन्दगी
तलाश करते है
तू हकीकत होके भी गुमनाम है इस शेहर में
और हम ज़माने भर में
तेरी तारीफे बयान करते है
कुछ इस कदर गुमनाम है वो शेहर
जिसमें हम तेरे होने का वजूद
तलाश करते है ,,......
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