रविवार, 30 अक्टूबर 2011

तेरे आने का इंतज़ार था मुझको...

तेरे आने का इंतज़ार था मुझको
तुझसे मिलने की हसरत थी इस दिल को
मैं सहता रहा इस दुनिया के सितम
बस तेरे लिए.....
बस तुझपे ही ऐतबार था मुझको

मैं तो प्यासा रहा
ता-उम्र तेरी चाहत का
बस तुझसे ही प्यार था मुझको

मैं तो पागल था बस हमेशा तेरे लिए
बस तू ही कभी नहीं समझी मुझको
ये दिल और ये जान तेरी ही थी हमेशा
तू कभी मांगती तो मुझसे..
हम हसके गुरबान हो जाते तेरी खातिर
पर तूमने कभी समझा ही नहीं मुझको

तेरे आने का इंतज़ार था मुझको...

शनिवार, 22 अक्टूबर 2011

एक और दीवाना लुटा जाता है ...

एक और दीवाना लुटा जाता है
इस प्यार के बाज़ार में
जिसका कोई खरीददार नहीं
जो खरीद सकते अगर हम
तो खरीद लेते हम उसकी मोहब्बत को
मगर उसकी कीमत हमारी
जिन्दगी से भी ज्यादा निकली
हम तो बीके सरे-ऐ-बाज़ार
उसे पाने की हसरत लिये
और एक वो थी .....
जो हमारे करीब होते हुये भी
हमारी ना बन सकी
ये जिन्दगी की कीमत क्या
जो एक बार वो मिल जाती हमें
तो हम खुद ही उसपर
कुर्बान कर देते ये हस्ती अपनी.

शुक्रवार, 21 अक्टूबर 2011

क्या- करते...

उनसे हम अपना हाल-ऐ-दिल बयान क्या करते.
वो सुबह थी,उनको शाम क्या करते.
वो धड़कते थे मेरे दिल में, मेरी सासे बनके
हम उनकी जिन्दगी तमाम क्या करते
उनके एक वादे पे हमने
खुद मिटा दी ये अपनी हस्ती
हम उनको कसूरवार क्या करते..

वो शामिल रहे हमेशा, हममे हमारी रूह बनकर
हम उनकी जिन्दगी का हिसाब क्या करते
हमें हमेशा जरुरत रही उनकी, जीने के लिए
फिर हम उनको अपना मोहताज़ क्या करते

वो सबकुछ थे, हमारे लिए
फिर हम खुद को उनमे तलाश क्या करते
ये जिन्दगी नाम थी, उनके
फिर उनको हम कोई और नाम क्या देते ..

ये जय यूँ तो नाम है, कभी ना हारने का
मगर जो खुद ही हार मान बैठा हो
फिर उसके जीतने की शर्त क्या रखते..

हारकर खुद को किसी के लिए
जीत भी जाते तो
उस जीत का क्या करते...

हम तो लहर है, समंदर की
जो माप आते, समंदर की गहराई अगर
तो उस समंदर से बराबरी क्या करते ..

उनसे हम अपना हाल-ऐ-दिल बयान क्या करते...

शनिवार, 15 अक्टूबर 2011

मेरी मोहब्बत का खात्मा

मेरी मोहब्बत का खात्मा
कुछ इस तरह से हो
मेरी कब्र पे बना उसका घर हो
जब-जब भी सोये वो
ज़मीन पर मेरे सिने पे
लगा उसका सर हो..

सोमवार, 10 अक्टूबर 2011

कभी चुप रहकर कभी कुछ कहकर

कभी चुप रहकर कभी कुछ कहकर
अपनी हर अदा से वो मुझे पागल बना देती है
वो कहती है की वो मुझे प्यार नहीं करती
फिर भी ना जाने क्यूँ.
मैं जब भी सामने होता हूँ उसके..
वो कुछ शर्मा कर कुछ घबराकर
बस मुस्कुरा देती है..
शायद वो पागल समझती है मुझे...
या कोई दीवाना उसका..
मगर मैं समझता हूँ की वो मेरी है
मुझे प्यार करती है ..
कभी चुप रहकर कभी कुछ कहकर
अपनी हर अदा से वो मुझे पागल बना देती है ...

रविवार, 9 अक्टूबर 2011

गम इस कदर मिला

गम इस कदर मिला के घबराकर पी गये
खुशी थोड़ी सी मिली जो मिलाकार पी गये

गम इस कदर मिला के....................


यूँ ना थे जनम से शराबी ऐ- साकी
टूटे थे मोहब्बत में खाई थी ऐसी चोट
अश्को को जो पीया तो शराबी हो गये

गम इस कदर मिला के..........................

चाहत से सीचते थे हम मोहब्बत की हर खुशी
और उनकी हर खता को हमने हँसी में भुला दिया
और वो थे बेवफा, बेवफाई निभा गये

गम इस कदर मिला के घबराकर पी गये
खुशी थोड़ी से मली जो मिलकर पी गये

शनिवार, 8 अक्टूबर 2011

यूँ तो हम भी कहा बुरे थे कभी

यूँ तो हम भी कहा बुरे थे कभी

बस कोई हमको कभी समझा ही नहीं

लोग समझते रहे की हम पागल है

और हमें ये सारी दुनिया बेवजह लगी

हम बुरे थे तो कोई बात नहीं

पर ये दुनिया अच्छी होकर

भी ना जाने क्यूँ अच्छी नहीं

यूँ तो हम हम भी कहा बुरे थे कभी