रविवार, 31 अगस्त 2008

ब्लू-लाइन और यमलोक

ब्लू - लाइन की मार से बढ गया यमराज ऑफिस का कामकाज
पहले करते थे ड्यूटी ८ घंटे की अब कम पड़ता है २४ घंटे का भी अन्तराल
यमदूतो की शिकायते अक्सर यमराज से होती है
ye ड्राईवओए के हरकते क्यूँ दिनाबर diबढती है
इसको मारा , उसको कुचला हाल जनता का बेहाल किया
करनी -धरनी सब इन ड्राईवर ओह की
क्यूँ बेमतलब हमारी डाटा लिस्टओ का हुआ भरमार
ब्लू -लाइन --------------------------
पहले घरवाली से बातें फ़ोन और चेत्त्तिंग स होती थी
अब ईमेल करना भी मुश्किल है
घर जाए तो एक अरसा हुआ
है यमराज है प्राण हरता अब कुछ तो करो इस विपदा में
या तो लाओ यमलोक में भी ब्लू - लाइन या बंद करो
जान लेने , लाने का कारोबार

ब्लू -लाइन ------------------------------------

शुक्रवार, 22 अगस्त 2008

में सेकंड हैण्ड

पापा ने की पहली शादी तो में हुआ
जो मर गई माँ मेरी तो आई नई मम्मी
फिर तो में शो पीस से सेकंड हैण्ड हुआ
पापा ------------------------------
पहले थी मेरी धाक इतनी की हर चीज़
बिन मांगे और बहुतायात में मिलती थी
रोना- धोना अपना बोनस था
हर नज़र हमपे थमती थी
जो मर गई माँ मेरी तो " डेडलाइन" मेरा हर सपना हुआ
पापा -------------------------

बड़ी मगरूर है किस्मत जो बाज़ी उसने यु पलती है
पहले था में शेंशा आज पापा की दिवाली है
कहा मेरा मानती थी वो, जो मेरी अपनी माँ थी
अब कहा सुनते है, मेरे पापा, जबसे नई मईया पधारी है
रहू में ताकता उनको , वो सीएम , पिम और आम जनता
सा हाल मेरा हुआ

पापा ---------------------------------

गुरुवार, 21 अगस्त 2008

मॉडल

एक दिन हमारा दिल एक लड़की पे आया था
था उसका कुछ मॉडल एसा जो हमारी नजरो को भाया था
चलती थी वो कुछ इसे जैसे नागिन चलती है
रूकती थी वो कुछ इसे जैसे छिपकली रंग बदलती है
नजरो से उसके गिरते अंगारे थे
जो देख ले कोई उसको तो डर के मारे मर जाए
भूतनी जैसे कुछ उसके इशारे थे
जो हस्ती थी तो लगता था तूफान है आया
जो चुप होती थी तो लगता था, है चुडेल का साया
मकेउप कुछ उसने अपने थोफ्ह्दे पे इसे लगाया था
आँखों के काजल को होठो पे सजाया था
होठो की लाली को आँखों में बसाया था
गजरा था कुछ उसका एसा जैसे शेरनी की मांड हो
कान और नाक में उसने उंगलियों को लटकाया था
इसी थी वो लड़की जिसने टोना अपना हम पे चलाया था
एक बदनसीब में ही बचा था जो उसके काबू में आया था

एक दिन ---------------------------------------

मंगलवार, 12 अगस्त 2008

अनपढ़ लुगाई

अनपढ़ लुगाई के हाथों

बरबाद हो गया

में तो शादी की

पहली ही रात

देवदास हो गया

मैंने कहा उससे

हाउ आर यू?

जवाब मिला

मैं लालचंद की छोरी हूँ

मैंने पूछा

व्हाट यू फील आफ्टर योआर मैरिज़?

उसने कहा खंडी चोखी

लागे थारी इंग्लिश

प्यार की थी

वो पहली रात

अपनी इंटरओदुच्शन में ही

अपना केस फाइल हो गया

किसी तरह रात गुजरी

और सुबह आई

अनपढों की महारानी

चाय में ऊँगली डाल लायी

मैंने कहा उससे

इतना कष्ट क्यूँ किया

उसने कहा

मैं तुम्हारी अधमरी हूँ

वाह री अर्धांग्नी को

अधमरी कहने वाली

तू मेरी अधमरी

मैं तेरा अधमरा हो गया।

अब तो आदत सी

उसकी हमको हो गई है

कहती है ब्लडीफुल तो

ब्यूटीफुल समझ लेते हैं

वो है बहुमत ख़ुद को

समर्थन में भर लेते है

जिन्दगी है छोटी

न जाने कब क्या हो जाए

है वो अनपढ़

फिर भी मीठी और

सच्ची बातें करती है

लाख पढों लिखों से भला

उस एक अनपढ़ का साथ हो गया ।

शनिवार, 9 अगस्त 2008

बस

बस के सफर में

कुछ अजीब सा माहौल

हमसे पेश आया

लड़कियों को मैं भइया

और औरतो को मैं

भिखारी नज़र आया

बस थी भरी तो

इस में मेरा

कसूर क्या था

पुरूष तो थे

एक आध दर्ज़न

बाकी बस औरतों से भरी थी

जहा भी पैर रखा तो गाली

जो हिला तो थप्पड़

उन्हे मैं इकलौता इंसान

हाथ साफ़ करने का

tissue पेपर नज़र आया।

चलो खूबसूरत लड़कियों ने

मारा था तो अच्छा था

पर क्यूं बदसूरतों ने

अपना हाथ साफ़ किया

कुछ तो थीं उनमें

हिलती-दुलती चाचियाँ भी शामिल

जिनका चलना-फिरना ही

एक करिश्मा था

किस तरह तोडा उन्होंने

एक नादान से बच्चे को

जैसे वो सब कबाडी

और मैं उन्हें हाथ साफ़ करने का

tissue पेपर नज़र आया।

jaidev kumar jonwal

गुरुवार, 7 अगस्त 2008

है तुमसे खुशी ऐ मेरे दोस्त


हर पल है खुशियाँ

हर राह है सुकून

हर अहसास में रवानगी

हर चाह में जूनून

अब तो मानो जिंदगी

मुट्ठी में लगती है

मांगते हैं तारे तो

चाँद हाथों तले होते हैं

खोजते हैं जिंदगी तो

कायनात कदमो तले

अठखेलियाँ करती है


बदल गया है अब

हमारी जिंदगी का

फलसफा और अंदाज़

हर कोई कहता

और पूछता है की

क्या बात है

आजकल आप कुछ

अजीब से पेश आते हो

होठों पे हँसी

आँखों में चमक और

बोली में मिठास और

साँसों में महक

ये सब कहाँ से सीखा है

मैं बस ये ही कहता हूँ


है ये मेरे दोस्त का सिला


वो आसमान से

ज़मीं पर आया है

मुझे अपना दोस्त और

तलबगार बनाया है

वरना मेरी कहाँ थी हस्ती।

मैं सिर्फ़ तेरी रह गुज़र हूँ


जो मैं हूँ

हंसता खिलखिलाता

भला कभी काटों ने भी

खिलना सीखा है

या कभी पतझड़ भी

बहार लायी है

जो है वो है

मैं तो सिर्फ़

और सिर्फ़ तेरी

रह गुज़र हूँ।

ऐ मेरे दोस्त।