मंगलवार, 30 सितंबर 2008

उम्मीद

मैं उम्मीद हर दिल में बसती हूँ
कही किसी के लिए पलभर की खुशिया बनकर
तो कही किसी के लिए तमाम उमर का इंतज़ार बनकर
मुझसे चाह रखने वाले न जाने कितने
और उनको चाहतो को पुरी करने वाली सिर्फ़ और सिर्फ़ में एक
में हमेशा से हर किसी के लिए जीती -मरती आई
जब किसी को खुशिया मिलती है तो में में उसके साथ झुमके नाचती -गाती हु
और जब किसी का दिल टूटता है ये किसी का कोई सपना पुरा नही होता
में उस पल न जाने कितने जन्मो मरती हूँ
आज मुझे कुछ समय मिला और मुझे समझने वाला तो उसके
जरिये में आप तक अपनी आवाज़ पंहुचा रही हूँ
हमेशा से कसूर मेरा नही रहा बल्कि मेरे काम के बीच वो लोग आ जाते है
जीने सिर्फ़ अपने से मतलब होता है , चाहें उसके बदले लोगे के सपने
टूटे तो टूट जाए , कोई मरे - तो मरे उन्हे किसी से कुछ नही लेना देना
एसा मेरे साथ एक बार नही कई बार हुआ
लकिन आप सब को कुछ याद नही होगा
बात उन दिनों की है जब हिन्दुस्तान एक था इसका बटवारा नही हुआ था
सब लोग मिलकर रहते थे
मगर तब भी कुछ लोग ने अपनी सोची और देश का भला चाहने वालो की बात दबा दी
उसके बाद दूसरा मौका तब आया १९८४ में उस वक्त मेरा देश तरक्की पर था
और जल्द ही विश्व का सबसे बड़ा राष्ट बन जाता
मगर वो हुआ जो कुछ लोग चाहतें थे
हमेशा से सिर्फ़ चंद लोगो की खातिर ही
मेरे हिन्दुस्तान का चेहरा बदलता रहा है
मेरी तो सिर्फ़ चलती थी १८५७ के ज़माने में
जब लोग एक हुआ करते थे
और उन्होंने एक आवाज़ में अंग्रेजो के ख़िलाफ़
विद्रोह का डंका बजा दिया और उन्हें ये देश छोड़कर जाना पड़ा
उस जामाने को बीते सदिया हो गई
आज तो मेरे देश में ही मेरा वजूद नही है
हर तरफ़ भरष्टाचार है ,लालाज़ है, असं-तोष है
लोग अपने लिए जी रहे है , चाहए उसके लिए उन्हें अपनों का ही लहू क्यूँ न बहाना पड़े
अब में ये सब देख कर थक गई हु, ख़ुद से हार चुकी हूँ
अब अगर कुछ हो सकता है और कुछ किया जा सकता है तो वो आप लोग को करना है
किसी को दोष नही देना , किसी को बुरा नही कहना , किसी से लड़ना नही
बस अपने -अपने दिल में झाक कर देखो
और ख़ुद से बाद करो और ये फ़ैसला लो की आज तक जो तुमने किया
उसमें कितना अपने देश के लिए था और कितना ख़ुद के लिए
आप लोगो को ख़ुद मेरी पीडा और दुःख समझ आ जायेगा की में इतनी दुखी क्यूँ हु

जो हुआ उसे स्वीकारने की हिम्मत रखो
तुम हिन्दुस्ता का दिल हो
तुम सब में बसती है
जावा हिन्दुस्ता की धड़कने

शुक्रवार, 26 सितंबर 2008

सड़क किस की है

ज़माने का नया दस्तूर देखिये बदल गए है लोगो के पहनावे और तोर--तरीके
फिर भी न जाने क्यूँ कुछ लोग अपनी ही दुनिया में रहते है ,सड़क को सड़क नही
कुश्ती का अखाडा समझते है , बात बीते सोमवार की है जब में करोल bagh मार्केट
में था और किसी काम से रोड क्रोस कर रहा था , मैंने देखा सामने से एक कार बहुत
तेज़ी से आ रही है , मैंने ख़ुद को संभाला और बच गया अब बात यहाँ कहा ख़तम होनी थी
वो कार सामने से आ रहे एक रिक्शा वाले से जा टकराई और उसका रिक्सा पलट गया
अब गलती देखी जाए तो कार में बैठे लड़के की थी , मगर वो टकराया रिक्सा से वाले से था तो इस लिए वो दोषी होकर भी दोषी नही बल्कि निर्दोष था , अब कार से निकलते ही उस लड़के ने और उसके दोस्त ने रिक्सा वाले पर जो हाथ-पाई और गालियों का भावः भंगिगम दृश्य पर्स्तुत किया उसे देखकर कुछ लोग तो खुस थे और मन ही मन ये चाह रहे थे की बेचारे रिक्सा वाले की गलती नही है फिर भी ये लोग उसे मार रहे है , वहां लोगो का हुजूम था लकिन किसी ने ख़ुद को इतना कष्ट नही दिया की वो उस निर्बल इंसान की मदद को आगे आए
और दुःख तो इस बात का था वो लोग पढ़े लिखे होकर बिल्कुल असभ्य इसान की तरह बात कर रहे थे , न तो वो किसी की सुन रहे थे और नही किसी को कुछ कहने दे रहे थे
उनमें से एक बोल रहा था , तुम लोगो को परमिट किसने दे दिया यहाँ रिक्क्सा चलाने का तुम्हारी वज़ह से ही हर शहर की आबादी बाद रही है तुम गरीब लोग पैदा ही क्यूँ होते है
जिन्दगी में तुम कुछ कर तो पाते नही हो जहा पैदा होते हो वही मर जाते हो
दो वक्त की रोटी तो तुमसे जुटा नही पाते और आ जाते हो बड़े शहर में भीड़ को और ज्यादा करने के लिए तुम लोग बोज हो ख़ुद पर और देश पर तुम्हे जीना का कोई हक नही है
इसके बाद दूसरा लड़का बोला में जो कह रहा हूँ वो बकवास समझ आ रही है या नही ये जो तुने नुकशान किया है न गाड़ी का तुझे देना होगा , जिस इंसान को १० रूपये के लिए १० किलोमीटर रिक्सा खीचना पड़ता हु वो बेचारा ५०० या १००० कहा से देगा
लोगो ने उन्हे खूब समझाया पर वो मानने को तेयार नही थे
इतने में से एक बुजुर्ग अंकल आए उनकी उमर ६० या ६५ के करीब थी उन्होंने पहले जानने की कोशिश की की माज़रा क्या है , फिर वो बोले बेटा आपका नाम क्या है एक ने कहा अंकल मेरा नाम सूरज है , और दुसरे ने कहा और मेरा आकाश अंकल बोले की आप दोनों के नाम इतने अच्छे है फिर आपको ये तो समझना चाहिए की आप लोग तो अपने नाम की तरह आलिशान घर में रहते हो और, आपकी गाड़ी भी कितनी बड़ी है अभी आपने ख़ुद से कुछ नही किया है तभी आपको ५०० रूपये बहुत लगते है और आप सोचते हो की ये रिक्सा वाला वो दे देगा लकिन बेटा ये गरीब रोज़ १० रूपये के लिए १० किलोमीटर रिक्शा खिचता है तो इस हिसाब से आप लोगो को इंतज़ार करना पड़ेगा जब ये ५० चक्कर पुरा कर लेगा तो आपको लौटा देगा आपके पैसे आप तब तक रुकोगे यहाँ ये बात सुनकर वो दोनों अजीब मुद्रा में सोचने लगे और बोलने लगे नही अंकल हमें बहुत काम है हम नै रुक सकते हमें पैसे नही चाहिए रहने दीजिये
इसके बाद अंकल ने कहा बेटा ये भीड़ गरीबो ने नही बल्कि इंसान की अविष्कारों ने बडाई है
पहले इंसान कम थे मोटर गाडिया नही थी लकिन इंसान ने अपनी सुविधा देखी और आज उसका नतीजा ये है इतनी भीड़ हो चुकी है आज हां इंसान कम और मोटर-गाडिया ज्यादा दिखाई देती है
अब इंसान गरीब होतो रिक्सा चलाकर पेट भरना चाहए तो लोग उसे ग़लत निगाहों से देखते है ये देश सबका है ये सड़क सबकी है , लकिन इंसान सबका नही है जो जैसा है ख़ुद को महान समझता है अब तुम लोग जब एक जगह निकलोगे तो टक्कर तो होगी
मेरा देश हिन्दुस्तान तरक्की तो जरुर कर रहा है लकिन यहाँ के बाशिंदों मेंं अपने नित-नये
अविष्कारों से लोगो में द्वेष भर रहा है ,
आज बात सड़क कि है , ये किसकी है , कल बात देश की होगी ये आमिरो का है या गरीबो का या फिर नाम वालो का और इसमें किसका कितना हिस्सा है

मंगलवार, 23 सितंबर 2008

प्रेमी - प्रेमिका

अजीब सा रिश्ता है, ये प्यार का कही भी बन जाता है
कभी हो जाती है सेटिंग स्कूल में , तो कभी कॉलेज में
या अपने घर के सामने वाली खिड़की में
या फिर राह चलते या फिर सफर के सफर में
आज कल तो सेटिंग होने लगी है, मंदिरों में भी यारो
सजके आते है , आशिको के चच्चा , लैलाओ की नानी
घरवाले सोचते है की आज कल आस्तिक हो गया है बच्चा अपना
पर वो कही और ही गुल KHILATA है,, माँ वैष्णो देवी की जगह
पूजा वर्मा के चक्कर लगता है
लड़किया भी कुछ कम नही है आज के दोर में देखो
घर से निकलती तो ये kehkar की आज टूशन या सहेली के घर उसकी बर्थडे पार्टी है
मगर वो पार्को में और सिनेमा होल्लो में नन्हे आशिक बने फिरते है
चाहें ख़ुद की औकात नही हो चवन्नी की मगर गर्ल-फ्रेंड में पे वो हजारो रोज़ khrachte है
और लड़किया चुपके -चुपके सायानी हो चली है , खाया-पिया murgaa ही फसाती है
ख़ुद तो उसे रोजे खाती है और कभी कभी अपनी सहेलियों के लिए भी छोड़ जाया करती है
मोबाइल के चक्कर में प्यार सस्ता हो चला है , कट -कॉपी पेस्ट से दिल का हाल बाया होता है
जो न जानता हो शायरी का जुमला भी वो लाखो शेर मिनटों में अपनी प्रिये को फॉरवर्ड करता है
प्रेमी ने कहा
मेरी जान तू मेरा ईमान तू
तू इस कदर मुझ में समां गई है
में ख़ुद को तो अक्सर भूल जाता हु
मगर जब भी तू याद आती है
तुझसे मिलने को जुलाब सा मचलता है दिल

पेर्मिका ने कहा
मेरे महबूब , मेरे जानू
तू ही तू अब तो दिल में ujhlataaरहता है
ये तेरा नशा है , या फिर तेरी मोहब्बत है
आज कल तो मेरा अब्बू भी पूछता है मुझसे
बेटी ये तेरे मोबाइल पर किस कम्बखत का चेहरा है

प्रेमी ने कहा
तेरे अब्बू को तू बस इतना kehde
है ये मेरी जान कोई paraya nai है
अभी है ये मोबाइल पर,, कल अपने घर में होगा
उससे जो ukhadta है ukhaad ले वो
kyunki वो आशिक है मेरा , नही मिलती उससे उसकी सूरत

प्रेमिका ने कहा
मेरे आशिक मेरी मोहब्बत के rakhwale
मेरे अब्बू को प्यार अपना समझ नही आता है
तू leja mujhai घर से अपनी bana ले
kyunki मेरा बाप लगा है
तेरी talaash में tamam pagal khano में

प्रेमी ने कहा
tujhko chahna शायद भूल थी मेरी
तेरी खातिर में अपना sara बैंक balance uda baitha
अपने gharwalo और dosto में बदनाम हो गया हु
और tune भी khub nibhayi aashki मेरी
जो भी खाया पिया मेरे paiSO से
फ़ोन करता रहा TUJHKO में BARSO से
और तू है आज सुन लेती है की में PAGAL हु
तू JA और कही किसी और से अब ISHQ FARHMA
KYUNKI THIK ही कहा है BUJURGO ने
ये AASHIQI नही nibhti ladakpan में
ये नई -naveli fulljhadiyo से

शनिवार, 20 सितंबर 2008

गुरुदेव-सीसी-जूसी व जयजयवंती परिवार


गुरु जी द्वारा चेलों का सम्मान





राजू की शादी


चार बच्चो के परिवार में
राजू सबसे छोटा था
रमेश, सुरेश, सविता में
वो सबसे भोला था
उम्र से कुछ नादां और
कद में कुछ नाटा था
शायद भगवान् ने कुछ
ठीक नही किया था साथ उसके
परिवार में तो
था ही वो छोटा
कद में भी उसने कंजूसी कर दी
एक अच्छे खासे लड़के की
जग हसाई कर दी
कद ४" १ इंच , शरीर पतला
रंग साफ़ लड़का कम
गन्ना ज्यादा नज़र आता था
लोग देखकर उसको
कहकहें लगाते थे
अरे देखो ये
जनाब भी खूब है
हर चीज़ खुदा ने
तोल-मोल के दी है इनको
तभी तो न कद से
न sharir से
न उम्र से ये कुछ ज्यादा है
अरे ये इंसान कम
दूसरी दुनिया का अलिएन ज्यादा है
ये वक्त यु ही चलता रहा
बात शादी की
जब आई छोटे मिया की
तो हर लड़की देखकर
उनको आहे भरती थी
"है" भगवान् इस टाइप के
मॉडल भी बनाता है "
जो शकल और सरीर के
हुलिए से दुसरे मुल्क के नजर आते है
जो हुई शादी इससे तो में तो जीते जी मर जाउंगी
इस भरी दुनिया में हुकुम-ऐ-बोर्नविटा कहलाऊंगी
हर किसी ने सो बहाने बनाकर न कर दी
इस भरी दुनिया में कोई न मिला छोटू राजू को
हार कर बैठ गया था वो अपने गम के अफशाने में
तो कही से एक किरण आई बनके उसकी जिन्दगी में
अरे एक लड़की है कही दूर के
"रिश्ते" में देखने में मुझ जैसी ही है ,छोटी , पतली और मेल सरीका है दोनों का
एक सा हाल -ऐ- करिश्मा है
बात चलायी तो बात बन बैठी एक नाटे को एक नाटी मिल बैठी
जोड़ी कमाल लाखो में एक थे वो
हर कोई देखकर उनको दुआए दे रहा था
शादी के दिन एक चूहे और एक चुहिया का मेल हो रहा था
अब ठीक ही कहा है, ऊपर वाले ने हर किसी का दिन आता है
और हर किसी को कोई न कोई मिलता है
बड़ी धूम धाम से राजू का विवाह सम्पन हुआ
और उसको दुल्हन सुख नसीब हुआ
अब तो चिंता है "ये की "आगे क्या होगा
जब उनके बच्चे होंगे
क्या वो राजू या उसकी बीवी के जैसे होंगे
या कुछ नया ही पनपेगा इन दोनों के मिलने से
एसा नो हो कोई जन्मे विस्फोट नया
या हो वो "अलिएन" या हो कोई अनुबम्ब नया
जो bhi ho अजब raha राजू का जीवन सारा
जब हुआ पैदा तो माँ- बाप हेरा थे
आज जो की है शादी तो zamaane कों चिंता है उसकी
वो आज भी अजूबा है, बरसो पहले जो था।

शनिवार, 13 सितंबर 2008

एक परिंदा

(आज मेरा जन्मदिन है तो ये कविता मेरे माता-पिता और मेरे गुरु जी अशोक चक्रधर को समर्पित है)


आज के दिन एक परिंदा
आसमान से आया था
कुछ इस दुनिया को देने

कुछ इस दुनिया से लेने आया था
नाम उसका जयदेव रखा था

माता-पिता ने चाव से
बचपन से था बड़ा शांत वो

कुछ कहते थे दब्बू है
दुनिया से मिलना-जुलना

चिकनी-चुपडी बातें
कहाँ उसको आती थीं
किंतु था वो
अपनी धुन का पक्का
खोया रहा वो सपनो में
पलटा जो समय का पहिया तो

दुनिया ने उसकी सुध ली
आज कहे कोई कवि उसको

कोई शायर तो कोई
गीतकार कहता है
गुरु मिला है उसको
अशोक चक्रधर सा महान
जो हर पल उस पर

अपनी कृपा-दृष्टि धरता है
अब पलट गए हैं

दुनिया के चेहरे
और उनकी सोच भी

कल तक थे जो बेगाने
आज हंसकर मुझसे मिलते हैं
सब महिमा है ऊपर वाले की

उसने ही किया कमाल
मैंने तो चाहा बस इतना ही

दूर गगन की छाव में
किसी को देना सुख के मोती

किसी के दुःख को साझा करना
मैं कल भी वो ही था

आज मैं जो हूँ
पर न समझे जो नादान थे
मैं शब्दों का महारूप विकराल
जो आता है दिल में कह देता हूँ

मैं न सोचूँ आज और कल की
मैं मस्त परिंदा आसमान का

वर्षों पहले इस धरा पर आया था।




शुक्रवार, 12 सितंबर 2008

जूसी और सीसी


कवि जयदेव जोनवाल उर्फ़ जूसी अपने मित्र सीसी के साथ।

गुरुवार, 11 सितंबर 2008

गुरु और चेले


कवि जयदेव जोनवाल उर्फ़ जूसी अपने गुरु श्री अशोक चक्रधर व अपने मित्र सीसी के साथ।

सोमवार, 1 सितंबर 2008

कविता

कवि की कल्पना ओ से कविता जनम लेती है
बन जाती है , वो खुबसूरत , जो हो उसमें हुस्न और इश्क शामिल
रहती है , वो यादो में नया इतिहास रचती है

कवि -----------------------------------
कोई लड़की अगर देखो तो कविता उसमें दिखाई दे
चेहरे से चांदनी छलके , होठो से मय का समंदर
नैन काजल से काले हो , जुल्फों में सारा ज़माना
रहो तुम देखते उसको, वो हरपाल तुमको याद रहती है
कवि ---------------------------------------
जो लग जाए प्यार का चस्का तो कविता रंग बदलती है
बने पल में सब बेगाने, खुदा को वो भुला दे
ये ही है , दस्तूर मोहब्बत का ये दुनिया बदलती है

कवि ----------------------------------------------

न समझे कोई कवियों को करे बस तारीफ कविताओ की
कोई तो ये ज़रा कह दे , हम है तेरे
तेरा हम हाथ थामेंगे , रहेंगे बस हमेशा तेरे
तेरी ही कविताओ में समायेंगे , बनेगे शब्द हम तेरे
तेरी कलम जो कहती है

कवि ----------------------------------

ममता

माँ के मर्म से बड़ा कोई मोल नही है
जहा में माँ से बड़ा कोई और नही है
पैदा जो हुए तो दर्द इसने सहा, जो रोये कभी तो सिने से लगा दिया
नही उतर सकेंगे इसका क़र्ज़ हम , क्यूंकि ये हिसाब कुछ रुपयो का नही है
माँ --------------------------
चलना सीखाया इसने, ठोखरlलगी तो उठाया
तुतलाए जब भी हम , हमें बोलना सीखाया
ये पहला अध्याय अपना , ये पहली क्लास अपनी
ये गुरु हमारा , हमारी पहचान इससे इसकी पहचान हमसे नही है

माँ ----------------------------
जो हो गए बड़े हम तो क्यूँ इसे दुत्कारे
तोडे रिश्ता ख़ुद का इससे ,क्यूँ इसे bhulaye
कभी थी इसकी duniya हमसे
आज हमारी duniya में ये नही है
माँ -------------------------

जो मर गए हम तो faishla ऊपर bhagwan भी करेगा
jeenhone dukhaya होगा माँ का दिल unhai नरक में bharega
bhagwan ने बनाया , माँ को ख़ुद के rupe में
हर एक घर में इसका मन्दिर, ये माँ है murat तो नही है

माँ ---------------------------------------